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________________ राजपूताने के जैन-धीर : भामाशाह का घराना ... भारमल .. आरमल कावड़िया गोत्रोत्पन्न ओसवाल जाति का महाजन : था। मेवाड़ के प्रसिद्ध शूरवीर महाराणा साँगा ने इसको वि० सं० १६१० ई० स० १५५३में अलवर से बलाकर रणथम्भोर का किलेदार नियत किया था। पीछे से जव हाड़ा सूरजमल बून्दीवाला वहाँ का किलेदार नियत हुआ, उस समय भी रणथम्भोर का बहुत सा काम इसी के हाथ में था+राणा उदयसिंह के शासन काल में यह उनके प्रधान पद पर प्रतिष्ठित हुआ। इसके सम्बन्ध की युद्ध-घटनाओं का अभी तक कोई विवरण उपलब्ध नहीं हुआ है। फिर भी महाराणा संग्रामसिंह जैसे प्रसिद्ध युद्ध-प्रिय व्यक्ति द्वारा इसका अलवर से बुलाया जाना, रणथम्भोर जैसे किले का किलेदार नियत होना और फिर किलेदार से एकदम राणा उदयसिंह का मंत्री होना ही इसके वीरत्त्वं और राज्य-नीतिज्ञ होने के काफी प्रमाण हैं। इसी को मेवाड़ोद्धारक भामाशाह और ताराचन्द्र के भाग्यशाली पिता होने का गौरव प्राप्त हुआ था। . :: . . . सूर-सुतहिं. जंगजन्म-संग, सहज जंग जागीर । समर-मरण में सब मिल्यौ, अरु खिताब रण-धीर ।। . , -वियोगिहरि २५ अक्टूबर सन् ३२] +राजपूताने का इ० ती० ख०.११४३ । .
SR No.010056
Book TitleRajputane ke Jain Veer
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAyodhyaprasad Goyaliya
PublisherHindi Vidyamandir Dehli
Publication Year1933
Total Pages377
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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