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________________ मेवाड़ के वीर न्वभाव होता है। वह कर्तव्य-विमुख पुत्र या पति का मुंह देखना नहीं चाहती, किन्तु कर्तव्य-परायण की वह बलैयाँ लेती हैं, उनके लिये मिट जाती हैं।" वीर आशाशाह ने कुमार उदयसिंह को अपना भतीजा कहके प्रसिद्ध किया और युवा होने पर आशाशाह ने उदयसिंह को अन्य सामन्तों की सहायता से चिचोड़ का सिंहासन दिला दिया। जबकि मेवाड़ के पड़े-बढ़े सामन्त, राज्य से बड़ी बड़ी जागीर पाने वाले चित्तौड़के यथार्थ उत्तराधिकारी कुमार उदयसिंह को शरण न दे सके, तब एक जैन कुलोत्पन्न महिला ने जो कार्य किया वह अवश्य ही सराहने योग्य है । आज भी इस सभ्यता के युग में जब कि हर प्रकार की शिकायतों के लिये न्यायालय खुले हुए हैं राजद्रोही को शरण देने वाला दण्डनीय होता है । तब उस जमाने में जब कि राजा ही सर्वेसर्वा होता था, वह विना किसी अदालत के अपनी इच्छानुसार मनुष्यों के प्राण हरण कर सकता था तय ऐसे संकटके समयमें भी उस महिलारत्न ने जो कार्य कर दिखाया था, वह आदर्श है। यदि इसी प्रकार आज भी जैन-माताएँ अपने पत्रों को सत्यासत्य कर्तव्य का बोध कराती रहें तो शीघ्र ही इस दुखिया भारत का बेड़ा पार हो जाये। अभयदान पै वारिये; अमित यज्ञ को दान । -श्रीवियोगिहरि [२४ अक्टूबर सन् ३२] नोट-यह ऐख नैनप्रकाश दिसम्बर सन् २८ में प्रकाशित होचुका है अब मुल परिवर्तन करके पुनः लिखा गया है। : -
SR No.010056
Book TitleRajputane ke Jain Veer
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAyodhyaprasad Goyaliya
PublisherHindi Vidyamandir Dehli
Publication Year1933
Total Pages377
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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