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धर्मकी आधारगिला-आत्मत्व
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मरणके उपरान्त आत्माके अस्तित्वको प्रमाणित किया है। टरटूलियन ( Tertulian ) नामक यूरोपियन पण्डित लिखता है कि आत्मा एक मौलिक खण्ड-विहीन ( Simple and indivisible ) वस्तु है। अतएव उसे अविनागी होना चाहिए; कारण अखण्ड तथा मूलभूत असयुक्त पदार्थ विनाग-विहीन होता है। आत्मामें जो ज्ञान उत्पन्न होता है, वह खण्ड खण्ड रूप न होकर अखण्ड समष्टि रूपमें पाया जाता है। उदाहरणार्थ हम कहते है 'आम एक मधुर फल है इस शब्दमालिकामे परस्परमे भेद होते हुए भी हमे 'आ' 'म' 'ए' 'क' आदिका पृथक्-पृथक् वोव न होकर समष्टि रूपसे आम वस्तुका परिज्ञान होता है। यह जान भौतिक मस्तिष्कसे उत्पन्न नहीं होता। इस जानकी पुनरावृत्ति भी की जा सकती है । इस कारण, जडतत्त्वसे भिन्न (Immaterial) . तत्त्वका सद्भाव मानना चाहिए । मैकडानल, शॉपन हॉयर, लेसिंग, हर्डर आदि पश्चिमके चिन्तकोने आत्माकी मौलिकताको एवं अविनागिताको स्वीकार किया है। अमूर्तिक आत्माका विचार अनुभवका विषय है, वह भौतिक विज्ञानकी परिधिके वाहरकी वस्तु है। मनोवैज्ञानिक गोधनमण्डल ( Psychical Research Society ) ने आत्माके अस्तित्वको स्वीकार किया है।
महाकवि कालिदास अपने अभिनानगाकुन्तलमें लिखते है"कभी-कभी सुखी प्राणी भी मनोरम पदार्थोका दर्शन, मधुर गब्दोका श्रवण करते हुए भी अत्यन्त उत्कण्ठित हो जाता है। इससे प्रतीत होता
१ Hindustan Rerier.
R A Scientific Interpretation of Christianity by Dr Elizabeth Fraser. p. 20.
"The investigations of the Psychical Research Society have conclusirely established the existence of the soul and in some cases eren the truth of the theory of transmigration'-'Key of Knorledge'.
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