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जनशासन
समप्टिमे अद्भुत चैतन्यका उदय कहासे होगा? एक प्राचीन जैन आचार्यका कथन है कि आत्मा शरीरोत्पत्तिके पूर्व था एव शरीरान्तके पश्चात् भी विद्यमान रहता है "तत्काल उत्पन्न हुए वालकमे पूर्वजन्मगत अभ्यासके कारण माताके दुग्ध-पानकी ओर अभिलाषा तथा प्रवृत्ति पायी जाती है। मरणके पश्चात् व्यन्तर आदि रूपमे कभी-कभी जीवके पुनर्जन्मका बोध होता है। जन्मान्तरका किसी-किसीको स्मरण होता है। जड-तत्त्वका जीवके साथ अन्वय-सम्बन्ध नही पाया जाता। इसलिए, अविनाशी आत्माका अस्तित्व माने बिना अन्य गति नही है।" ____ 'न्यायसूत्र' के रचयिता कहते है-"यदि जन्मके पूर्वमे आत्माका सद्भाव न होता, तो वीतराग-भाव सम्पन्न शिशुका जन्म होना चाहिए था , किन्तु अनुभवसे ज्ञात होता है कि शिशु पूर्व अनुभूत वासनाओको साथ लेकर जन्म-धारण करता है।" २
आत्माके विषयमे एक वात उल्लेखनीय है, कि वह अपनेको प्रत्येक वस्तुका ज्ञाताके रूपमे ( Subjectively ) अनुभव करता है और अन्य पदार्थोंको केवल ज्ञेयरूपसे ( Objectively ) ग्रहण करता है। भाषा-विज्ञानकी दृष्टिसे भी आत्माका अस्तित्व अगीकार करना आवश्यक है, अन्यथा उत्तम पुरुष ( First Person ) के स्थानमे अन्य पुरुष या मध्यमपुरुष रूप शब्दोके द्वारा ही लोक-व्यवहार होता । अग्रेजी भाषामे आत्माका वाचक 'I' शब्द सदा बडे अक्षरोमे ( Capital letter ) लिखा जाता है। क्या यह आत्माकी विशेषताकी ओर सकेत नहीं करता है?
विख्यात वैज्ञानिक सर ओलिवर लॉजने अपने गम्भीर प्रयोगो द्वारा १ "उक्त च-तदहर्जस्तनहातो रक्षोदृष्टेर्भवस्मृतेः। भूतानन्वयनात्सिद्ध प्रकृतिज्ञः सनातनः॥"
___-प्रमेयरत्नमाला पृ० १८१ २ "वीतरागजन्मादर्शनात्"-न्यायसू० ३।१।२५।