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जैनशासन
अपने चरित्रके बारेमे भूमाविष्ट कर दिया था, और वे उसे परम धार्मिक सोचने लगे थे। पीछे उनका भ्रम दूर हुआ था, इसी प्रकार आधिभौतिक विज्ञानके द्वारा जगत्की विचित्र अवस्था हुई है। महाकवि अकबरने बहुत ठीक कहा है
__ "इल्मी तरक्कियोसे जबां तो चमक गई।
लेकिन अमल है इनके फरेबो दगाके साथ ॥" प्रख्यात वैज्ञानिक प्रो० एम० पोलाइनने वृटिश एसोसिएशनके समक्ष दिए गए अपने एक भाषणमे यह बात स्वीकार की है, कि यूरोपमे 'उन लोगोका नेतृत्व है, जो हमे यह वात सिखलाते है, कि केवल भौतिक पदार्थ ही सत्य है।' इन भौतिकवादियोके द्वारा सचालित धार्मिक संस्थाओमे भी प्राय कृत्रिमता, स्वार्थपोषण, स्ववर्गका श्रेष्ठत्व-स्थापन, कूटप्रवृत्ति आदि विकृतियोका विशेष सद्भाव पाया जाता है। वे प्रायः अपने सदृश कृत्रिम तथा कूटवृत्तिके धारकोको उच्चताके आसनपर आसीन करते है, किन्तु जिनसे यथार्थ प्रकाश प्राप्त होता है, उनको ये अन्धकारमे रखते है। ___ यन्त्रवादके विशेष प्रचारके कारण पहलेकी अपेक्षा वस्तुओकी उत्पत्ति अधिक विपुल परिमाणमे हो गई है, किन्तु फिर भी इस समृद्धिके मध्य गरीवीका कष्ट (Poverty ammd prosperity) बढता ही जाता है। लाखो टन गेहूँ तथा अन्य बहुमूल्य खाद्य सामग्री अनेक देशोमे इसलिए जला दी जाती है या नष्ट कर दी जाती है, कि बाजारका निर्धारित भाव नीचे न खिसकने पावे और उनके विशेष उद्देश्योमे बाधा न आवे। विदेशो की वात जाने दो, पहले वगाल सरकारने लाखो वगालियोको दानेके कणकणके लिए तरसाते हुए मृत्युकी भेट हो जाने दिया था, किन्तु सगृहीत विपुल धान्यराशिका उपयोग नहीं होने दिया, भले ही हजारो मन धान्य सड़कर नष्ट हो गया। आजकी राजनीतिकी चाल ही ऐसी विचित्र है, कि उसके आगे अपने स्वार्थ तथा मान ( Prestige ) पोषणके सिवाय अन्य नैतिक तत्त्वोका कोई स्थान नही है। हजरत मसीहने जो यह