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जैनशासन
सुभाषित एव उज्ज्वल शिक्षाओकी दिशामें जैनवाड्मयसे भी वहुमूल्य सामग्री प्राप्त होती है। क्षत्रचूड़ामणि काव्य ग्रथमे प्रत्येक पद्य सुन्दर सूक्ति से अलकृत है। ग्रन्थकारकी कुछ शिक्षाएँ बहुत उपयोगी है। वे कहते है। “विपदस्तु प्रतीकारो निर्भयत्व न शोकिता।" ३, १७ ॥
विपत्तिको दूर करनेका उपाय निर्भीकता है, शोक करना नही। कोई कोई व्यक्ति वस्तुध्वसकर्ताकी शक्ति और बुद्धिकी प्रश सा करते है, और निर्माताको अल्पश्रेय प्रदान करते है, उनके भ्रमका निवारण करते हुए कवि कहते है"न हिं शक्यं पदार्थानां भावनं च विनाशवत् ।” २, ४६ ।
वस्तुको नष्ट कर देना-कार्यको बिगाड़ देना जैसा सरल है, वैसा उस कार्यको बनाना सरल नहीं है। ____ ससार-समुद्रमे विपत्ति रूपी मगरादि विद्यमान है। उस समुद्रमे गोता लगानेवाला मृत्युके मुखमे प्रवेश करता है। समुद्रके तीर पर ही रहनेवालोकी भलाई है। कवि कहते है
__ "तीरस्थाः खलु जीवन्ति न हि रागान्धिगाहिनः।" ८, १। ___ यहा तटस्थवृत्तिको कल्याणकारी बताया है। नम्रता तथा सौजन्यका 'प्रदर्शन- सत्पुरुषोके हृदय पर ही प्रभाव डालता है, दुष्ट व्यक्ति तो नम्रताको दुर्बलताका प्रतीक समझ और अधिक अभिमानको धारण करता है___ "सतां हि नम्रता शान्त्यै खलानां दर्पकारणम् ।" ५, १२ ।
गरीबीके कारण कीर्तियोग्य भी गण प्रकाशमे नही आते। अकिंचन की विद्या भी उचितरूपमे शोभित नही हो पाती।
"रिक्तस्य हि न जागति कीर्तनीयोऽखिलो गुणः ।
हन्त किं तेन विद्यापि विद्यमाना न शोभते ॥" ३,७ । साधारणतया मनोवृत्ति अकृत्यकी ओर झुकती है, यदि खोटी शिक्षा और मिल जाय, तो फिर क्या कहना है