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पुण्यानुवन्धी वाड्मय
३६३ गुणभद्र स्वामीने आत्मानुशासनमें एक सुन्दर शिक्षा दी है:-"बुद्धिशाली व्यक्तिको उचित है कि अपने मनरूपी वन्दरको श्रुतस्कन्धद्वादशागरूप महान् वृक्षमें रमावे।" गणित, ज्योतिप आदि विषयोमे चित्त लगनेपर मनकी चचलता दूर होती है। वह गान्त एव निरुपद्रव हो जाता है। नवमी सदीमे रचित महावीराचार्यके गणितसार-संग्रहमे जैन दृष्टिसे गणितशास्त्रपर मार्मिक प्रकाग डाला गया है। गणित ग्रन्थके विशेषज्ञ प्रो० दत्त महाशयने इस गणित ग्रन्यके विपयमे लिखा है-त्रिभुज (Rational triangle) के विषयमे विशेप वातोको प्रकाशमे लानेका श्रेय यथार्थमें महावीर आचार्यको है। आधुनिक इतिहासवेत्ता भूलसे यह श्रेय उक्त आचार्यके पश्चाद्वर्ती लेखकोको देते है। दर्शन और न्यायके क्षेत्रमें समन्तभद्र, सिद्धसेन, अकलक, हरिभद्र, विद्यानन्दि, माणिक्यनन्दि, प्रभाचन्द्र, अनन्तवीर्य, अभयदेव, वादिदेव, हेमचन्द्र, मल्लिपेण, यशोविजय आदि की रचनाए इतनी महत्त्वपूर्ण है, कि उनका सम्यक् परिशीलन अध्येता को जैनशासनकी ओर आकर्षित किये विना नहीं रहता। स्वामी समन्तभद्रकी रचनाए अपनी लोकोत्तरता तथा असाधारणताके लिए विख्यात है। उनका देवागमस्तोत्र विश्वके समस्त चिन्तकोके लिए चिन्तामणिके
१ "अनेकान्तात्मार्थप्रसवफलभारातिविनते वच.पर्णाकोणे विपुलनयशाखाशतयुते । समुत्तुंगे सम्यक्प्रततमतिमूले प्रतिदिनं श्रुतस्कन्धे धीमान् रमयतु मनोमर्कटममुम् ॥"
--यात्मानुशासन ।१७० What is more important for the general history of mathematics, certain methods of finding solutions of rational triangles, the credit for the discovery of which should very rightly go to Waharira, are attributed by modern historians, by mistake to writers posterior to him.
-Bulletin Cal Jath Soc XXI 116.