________________
पुण्यानुवन्धी वाङ्मय
६६१ भाषियोके लिये अत्यन्त मूल्यवान् निधि है। तामिल भापामे जो सस्कृत भापाके वहुतसे शब्द पाये जाते हैं, यह कार्य जैनियो द्वारा सम्पन्न किया गया था। उनने ग्रहण किये गये संस्कृत भापाके गन्दोमे ऐसा परिवर्तन किया, कि वे तामिल भापाकी ध्वनिगत नियमोके अनुरूप हो जावे।,
कन्नड साहित्य भी जैनियोका अधिक ऋगी है। वास्तविक वात तो यह है, कि वे उस भाषाके जनक है। कन्नड भाषाके विषयमें श्री राइस का कथन विगेप उपयोगी है'-"१२ वी सदीके मध्य तक केवल जैन साहित्य ही पाया जाता है, तथा उसके पश्चात् भी बहुत काल तक जैन साहित्य प्रमुख रहा है। उसमें अधिक प्राचीन रचनाए एव अत्यन्त उच्च वहुसंख्यक ग्रन्थ भी सम्मिलित है।" ___ जैन साहित्यके महत्त्वको हृदयगम करने वाले एक महान् साहित्यसेवीने हमसे एक बार कहा था, कि "जैन साहित्यके द्वारा जैनधर्म जीवित रहेगा।" इस माहित्यके प्राणपूर्ण रहनेका अन्यतम कारण यह भी है कि जैनसाहित्यके निर्माणमें तपोवनवासी, गान्त, निराकुल, परम सात्त्विक प्रवृत्ति तथा आहारवाले, उदात्तचरित्र तथा महान् ज्ञानी मुनीन्द्रोका पुण्य जीवन प्रधान कारण रहा है। सात्त्विक जीवनशाली
altered the Sanskrit, which they borrowed in order to bring it in accordance with Tamil euphonic rules. The Kanarese literature also owes a great deal to the Jains. In fact they were the originators of it."
? Until the middle of the 12th Con it is exclusively Jain and Jain literature continues to be prominent for long after It includes all the more ancient and many of the most eninent of Kanaresc pritings" Vide Prof M. S. Ramaysamı Ayanger's article "The Jains in the Tamil Countries'-Jain Gazette P. 166 Vol. (XV)