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जनशासन
भी उनका सम्मान करते है। उनके कुछ शास्त्र तो यूरोपीय विज्ञान के लिए अव भी महत्त्वपूर्ण है। जैन साधुओके द्वारा निर्मित नीव पर तामिल, तेलगू, तथा कन्नड़ साहित्यिक भाषाओकी अवस्थिति है।
प्राकृत विमर्शविचक्षण रा० ब० नरसिंहाचार्य एम० ए० अपने 'कर्णाटककविचरिते' ग्रन्थमे लिखते है-'कन्नड-भाषाके आद्य कवि जैन है। अब तक उपलब्ध प्राचीन और उत्कृष्ट रचनाओका श्रेय जैनियो को है।' कन्नड साहित्यके एक मर्मज्ञ विद्वान् लिखते है-"कन्नड भाषा के उच्च कोटिके साठ कवियोमे पचास कवि जैन हुए है। इनमेसे चालीस कवियोके समकक्ष कवि इतर सप्रदायोमें उपलब्ध नहीं होते।" कविरत्नत्रयके नामसे विख्यात जैन रामायणकार महा कवि पप, शान्तिनाथ पुराणके रचयिता महाकवि पुन्न एव अजितनाथपुराणके रचयिता कविवर रन जैन ही हुए है। महाकवि पप तो कन्नड प्रान्तमे इतनी अधिक सार्वजनिक वदनाको प्राप्त करते है, जितनी कि अन्य भापाओके श्रेष्ठ कवियोको भी प्राप्त नहीं होती। जिनका सपर्क कर्णाटक आदि प्रान्तीय साहित्यिकोके साथ हुआ हो वे जानते है, कि श्रेष्ठ जैन रचनाकारोके प्रसादसे जनेतर बन्धु भी जैन तत्त्वज्ञानके गभीर एव महत्त्वपूर्ण तत्त्वसे भी परिचित तथा प्रभावित रहते है। अध्यापक श्री रामास्वामी आयगर का कथन है कि तामिल साहित्यको जो जैन विद्वानोकी देन है, वह तामिल
tance to European science The Kanalese literary language and the Tamil and Telgu rest on the foundations laid by the Jain monks."
- Indian Sects of the Jains'-p. 22. { "The Jain contribution to Tamil literature form the most precious possessions of the Tamilians. The largest portion of the Sanskrit deriviations found in the Tamil language was introduced by the Jains. They