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' पुण्यानुवन्धी वाङ्मय ३५६ मनोहर एव गभीर अनुभवपूर्ण सुभापित रत्नोसे अलकृत तथा विशुद्ध विचारोका प्रेरक क्षत्रचूडामणिकाव्यका रसास्वाद प्रत्येक सरस्वतीभक्तको लेना चाहिए। आचार्य वादी सह का जीवधरस्वामीके चरित्रको प्रकाशित करने वाला 'गद्यचिन्तामणि' जैसा अपूर्व, गभीर, कवित्व एव ज्ञानपूर्ण महाकाव्य जिसके अध्ययन गोचर हुआ है, उसे विदित होगा, कि 'कादम्बरी' ही गद्यजगत्की श्रेष्ठ कृति नहीं है, किन्तु गद्यचिन्तामणि और यशस्तिलकचम्पू नामकी जैन रचनाएँ भी है। इस प्रकाशमे कुछ भक्तोका यह कीर्तन कि 'वाणोच्छिष्टमिद जगत् अतिशयोक्ति अथवा भक्तिपूर्ण उद्गार माना जायगा। महाकवि वीरनदिका चंद्रप्रभचरित्र यथार्थमे सुधाशुके सदृश आनन्द तथा शान्ति प्रदान करता है। कविवर हस्तिमल्लका मैथिलीकल्याण तथा विक्रान्तकौरव नामक नाटक नाट्य साहित्यमे महत्त्वपूर्ण है। यदि सहृदय साहित्यिक जैन काव्यरचनाओका मनन तथा परिशीलन करे, तो उसे यह अनुभव होगा, कि जिस प्रकार तत्त्वज्ञानके क्षेत्रमे जैन ऋषियो तथा ज्ञानी जनो ने अपूर्व सामग्री प्रदान की है, उसी प्रकार साहित्य-ससारको भी उनकी देन अनुपम है। ___ जैन विद्वानोने संस्कृत भाषा तक ही अपनी कल्याणदायिनी रचनाओको सीमित नहीं किया, किन्तु अन्य भाषाओमे भी उनकी रचनाएँ गौरवशालिनी है। प्रत्येक जीवनोपयोगी विषय पर जैन मनीन्द्रोने लोकहितार्थ प्रकाश डालनेका सफल प्रयत्न किया है। प्रोफेसर बलरका कथन है कि निगेने व्याकरण, ज्योतिप तथा अन्य ज्ञानके विपयोमे इतनी प्रवीणता प्राप्त की है, कि इस विषयमे उनके शत्रु
{ "The Jains have accomplished so much importance in grammar, astronomy, as well as in some branches of letters that they have won respect even from their cnemies and some of their works are still of impor