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इतिहासके प्रकाशमे
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शिवाजी महाराजने अपने एक पत्रमे भी इसका प्रयोग किया है।
"भोर किल्ले रोहिडा प्रति राजश्री शिवाजी राजे जोहार ।" ( मराठी वाडमयमाला - पटवर्धनकृत) जुहार गव्दकी व्यापकतापर गहरा प्रकाश रहीम कविके इस पद्य द्वारा पडता है
"सन कोई तबसों करें राम जुहार सलाम । हित रहीम जब जानिये जा दिन अटके काम ॥"
इस प्रकार भारतीय जीवनके साहित्यपर सूक्ष्म दृष्टि डालने से जैनत्व के व्यापक प्रभावको ज्ञापित करनेवाली विपुल सामग्री प्रकाशमे आए विना न रहेगी । भारतमे ही क्यो बाहरी देगोमे भी ऐसी सामग्री मिलेगी । अमेरिकाका पर्यटन करनेवाले एक प्रमुख भारतीय विद्वान्ने हमसे कहा था कि वहा भी जैन संस्कृतिके चिह्न विद्यमान है। जिन लेखकोने वैदिक दृष्टिकोण को लेकर प्रचारको भावनासे उन स्थलोका निरीक्षण किया उनने अपने सप्रदायके मोहवश जैन संस्कृति विषयक सत्यको प्रगट करने का साहस नही दिखाया । आशा है अन्य न्यायशील विद्वान् भविष्यमे उदार दृष्टिसे काम लेगे ।
हिन्दूशास्त्रोसे विदित होता है कि युगके आदिमे भगवान्
१. 'जुहार' को भातिवश जौहर - व्रतका द्योतक कोई कोई सोचते हैं, किन्तु उपरोक्त विवेचन द्वारा इसका वैज्ञानिक अर्थ स्पष्ट होता है । जैन संस्कृतिके अनुरूप भाव होनेके कारण ही जैन जगत् में अभिवादन के रूपमें इसका प्रचार है । अत. 'जौहर' के परिवर्तित रूपमें जुहारको मानना असम्यक् है ।
२ "What is really remarkable about the Jain account is the confirmation of the number four and twenty itself from non-Jain sources The Hindus indeed, never disputed the fact that Jainism was founded by Rish