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जैनशासन
वृषभदेवने जैनधर्मकी स्थापना की। वे सर्वज्ञ, सर्वदर्शी महामानव थे, जिनकी हिन्दू धर्मके अवतारोमे भी परिगणना की गई है। जैन शास्त्रोके समान ही उनके माता-पिता मरुदेवी तथा नाभि राजा कहे गए है। भारतवर्षका नाम जिन चक्रवर्ती भरतके प्रभाववश पडा वे भगवान् वृषभदेवके गणवान् पुत्र हिन्दू शास्त्रोमे भी कहे गए है। कूर्मपुराणमे लिखा है कि-"हिमवर्षमे महात्मा नाभिके मरुदेवीसे महादीप्तिधारी वृषभ नामक पुत्र हुआ। ऋषभसे भरत हुआ, जो सौ पुत्रोमे ज्येप्ठ एव वीर था।" मार्कण्डेयपुराणके कथनानुसार पिता ऋषभने दक्षिण दिशामे स्थित हिमवर्ष भरतको दिया। इससे उस महात्माके कारण यह भारतवर्ष कहलाया। सर राधा कृष्णन्का कथन है, “जैन परपरा ऋषभदेवको जैनधर्मका सस्थापक बताती है जो अनेक सदी पूर्व हो चुके है। इस विषयके प्रमाण विद्यमान है कि ईस्वी सन्से एक शताब्दी पूर्व लोग प्रथम तीर्थकर ऋषभदेवकी पूजा करते थे। इसमे कोई सदेह नहीं है कि वर्धमान अथवा पार्श्वनाथके पूर्वमे भी जैनधर्म विद्यमान था। यजुर्वेदमे ऋषभदेव, अजितनाथ तथा अरिष्टनेमि इन तीन तीर्थकरोका bhadeva in this half cycle and placed his time almost at what they conceived to be the commencement of the world " Rishabhadeva, p 66.
"हिमाह्वयन्तु यद्वर्ष नाभेरासोन्महात्मनः । तस्यर्षभोऽभवत्पुत्रो मरुदेव्यां महाद्युतिः ॥ ऋषभात् भरतो जज्ञे वीर. पुत्रशताग्रजः ।"
____Kurma Purana LXI, 37-38 "ऋषभात् भरतो जज्ञे वीर. पुत्रशताद्वरः ॥ सोऽभिषिच्यर्षभः पुत्रं महाप्रावाज्यमास्थितः । हिमा ह्वयं दक्षिणं वर्ष भरताय पिता ददौ । तस्मात्तु भारतं वर्ष तस्य नाम्ना महात्मनः ।"
-- Markandeya Purana L 39-41