________________
२४०
जैनशासन
मनोवृत्ति वाला केवल एक ही आम तोड़कर तृप्त है। किन्तु, शुक्ल अन्त करणवाला पूर्णमानव शान्तिपूर्वक गिरनेवाले फलकी प्रतीक्षा करता है।"
जैन शास्त्रोमे उपर्युक्त व्यक्तियोके मनोभावोको 'लेश्या' नामसे वर्णित किया है। क्रोध, मान, माया, लोभ रूप कषायोसे अनुरञ्जित मन, वचन, कायकी प्रवृत्तिको लेश्या कहते है। जिस व्यक्तिकी शुक्ल मनोवृत्ति होगी उसे आचार्य नेमिचन्द्र 'पक्षपातरहित, आगामी भोगो की इच्छा न करनेवाला, सर्व जीवो पर समान दृष्टि, राग-द्वेष तथा स्त्री-पुत्रादिमे स्नेहरहितपरणति-सम्पन्न बताते है। उपर्युक्त वृक्षके उदाहरणमे उस शान्त और सन्तुष्ट व्यक्तिका भाव बताया है कि वह वृक्षको तनिक भी पीडा विना पहुँचाये गिरनेवाले आमकी प्रतीक्षामे है। उसकी कितनी उच्च मनोवृत्ति है। ऐसे साधुचेतस्क व्यक्ति गृहस्थ होते हुए भी सबके द्वारा आदरपात्र होते है। उस व्यक्तिकी तृष्णा, स्वार्थपरता और दुष्टताकी भी कोई सीमा है, जो अपनी मर्यादित आवश्यकताको पूर्तिके सिवाय दूसरे बहुतोकी आवश्यकताओको सर्वदाके लिये सहार करनेपर उतारू हो वृक्षको जडमूलसे उखाडना चाहता है। गोम्मटसारमे ऐसे मनोवृत्तिवालेके चिन्ह इस प्रकार बताए है। वह अत्यन्त उग्न स्वभावयुक्त, जीवन भर वैरको न भूलनेवाला, निन्दनीय भाषणकर्ता, करुणा-धर्म आदिसे होन, दुष्ट और किसीके समक्ष नम्न न होनेवाला कहा गया है। १ "ण य कुणइ पक्खवायं ण वि य णिदाणं समो य सवसि । णत्थि य रायदोसा होवि य सुक्कलेस्सस्स ॥ ५१६॥"
-गो०जी०। २ "चंडो ण मुचइ वेरं भंडणसोलो य धम्मदयरहिरो। दुट्ठोण य एदि वसं लक्खणमेयं तु किण्हस्स ॥५०॥"
गो० जी० ।