________________
कर्मसिद्धान्त
२३६
भोग, विषयादिके मध्यमे रहते भी निर्मोही ज्ञानी कविके शब्दोमें “करत बन्धकी छटाछटीसी।' उदाहरणके लिये बिल्लीको देखिये। अपने मुहमे वह चूहेको दवाती है, उस मनोवृत्तिमे और जव वह उसी मुहमें वच्चेको दबाती है, कितना अन्तर है। वच्चेको पकडनेमे क्रूरता नही है, चूहेको पकडने में महान क्रूरता है। इसी प्रकार ज्ञानी और अज्ञानीकी भिन्न-भिन्न मनोवृत्तिके अनुसार कर्मवन्धनमे अन्तर पड़ता है।
मनोभावोको समझानेके लिए जैन-सिद्धान्तमे एक सुन्दर रूपक बताया गया है। उसका वर्णन 'Statesman' कलकत्तामे श्रमणबेलगोलाके जैनमठका उल्लेख करते हुए छपा था। उस वर्णनमें जैनमठकी दीवालपर अकित चित्रका इस प्रकार स्पष्टीकरण किया गया है
"The most interesting of these depicts is six men standing by a mango tree. They have hearts of various hues, corresponding to their respect for life. The black-hearted man tries 70 fall the tree, the indigo, grey and red hearted are respectively content with big boughs, small branches and tiny springs, the pinkhearted man merely plucks a single mango, but the man with the white heart of perfection waits in patience for the fruit to drop."
इन चित्रोमे सबसे अधिक मनोरञ्जक वह चित्र है जिसमें एक आमके वृत्लके नीचे छह व्यक्ति खडे हुए अकित हैं। उनके अन्त करणमें जीवनके प्रति जिस प्रकार का भाव है तदनुसार उनके अन्त करणके विविध वर्ण वताये गये है। कृष्ण अन्त करणवाला वृक्षको जडमूलसे उखाडनेके प्रयत्नमे लगा है। नील, कापोत और पीत मनोवृत्तिवाले क्रमश. वडी डाल, छोटी डाल और लघु उपशाखासे सन्तुष्ट है। पद्म