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प्रवुद्ध-साधक
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सम्प्रदायके विषयमें अग्रेजी विश्वकोषकारका निम्न कथन विशेप वोषप्रद है -“जैनधर्म दिगम्बर और श्वेताम्बर नामक दो महान् सम्प्रदायोमे विभक्त है । श्वेताम्बर सम्प्रदाय' अभीतक सम्भवत. ५ वी सदी तकका सिद्ध होता है। किन्तु, दिगम्बर-सम्प्रदाय ईस्वी सन्से ५ सदी पूर्व तक पक्के तौरपर प्रमाणित होता है । यह दिगम्वर लोग, वौद्धोके पाली पिटकोके अनेक उल्लेखोमे 'निग्गण्ठ' नामसे कहे गये है। अतएव इन्हे कमसे कम ईसासे ६ सदी पूर्वका तो अवश्य होना चाहिये। अगोकके एक "गिलालेखमे निग्गण्ठोका उल्लेख आया है।" ___ सचेल सप्रदायको प्राचीनताके आसनपर समासीन करनेके मोहवा निग्गण्ठ शब्दाका अभिधेय दिगम्वर साधु न कर ऐसे सवस्त्र साधु करनेका श्रम उठाया जाता है, जो रागद्वेपकी ग्रन्थिसे उन्मुक्त हो, उनकी मान्यताके अनुसार वस्त्रादिके धारण करते हुए, प्रक्षालनादि करते हुए रागद्वेषका अभाव और परिपूर्ण अहिंसाकी साधना और निराकुलता बन सकती है। __ यह विचार सत्य समर्थित नहीं है। उपनिषद् साहित्यमे जातरूपघारी-दिगम्वरको निर्ग्रन्थ कहा है। जावालोपनिषद्म 'परमहस' का स्वरूप बताते हुए उसे “यथाजातरूपधरो निर्ग्रन्थो निस्परिग्रह" कहा है।
{ "The Jains are divided into two great parties Digambers or sky-clad ones and the Swetambers or the white robed ones The latter hare only as yet been traced and that doubtfully as far back as the 5th century after Christ The former are almost certainly the same as the Niganthas, who are referied to in numerous passages of Buddhist Palı Pitatkas and must therefore be atleast as old as the 6th century BC.- The Niganthas are referred to in one of Asoka's edicts" Vide Ency. Brit. Ed. Eleventh Vol. 15 p. 127.