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जैनशासन
प्राचीनताको ही सत्यकी कसौटी माननेवाले कहते है - दिगम्बर विचारधारा अर्वाचीन है । सवस्त्र मुद्राका मार्ग सबसे प्राचीन है । यदि मनुष्य तर्ककी दृष्टिसे इसपर विचार करे तो उसे स्पष्टताकी कोई आवश्यकता नही है । कारण यह तो वालक भी जानता है कि माताके उदरसे पहिले दिगम्वर - शिशु ही जन्म लेता है, पश्चात् वस्त्रादि परिधान वाला बनाया जाता है | प्रो० बलदेव उपाध्याय दिगम्वरत्वको भगवान् पार्श्वनाथ के बादकी वस्तु बताते हुए लिखते है - "पार्श्वनाथ वस्त्र धारणके पक्षपाती थे। पर महावीरने नितान्त साधनाके लिए वस्त्र परिधानका वहिष्कार कर नग्नताको ही आदर्श आचार बताया है ।" ( भारतीय दर्शन, पृ० १४६ ) ।
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जैन-आगमकी दृष्टिसे यह बात विपरीत है । भगवान् ऋषभदेव आदि सभी तीर्थकरोने परम कल्याण प्राप्तिके लिए स्वयं अपने जीवन द्वारा दिगम्बर श्रमण-मुद्राका प्रचार किया था । अहिसा तत्त्वज्ञान और अध्यात्म-विज्ञानके प्रकाशमे भी दिगम्वरत्व 'जिन' कहे जानेवालेकी आवश्यक मुद्रा हो जाती है । अबतक पुरातत्त्व विभाग द्वारा जो जैन मूर्तियो आदिकी उपलब्धि हुई है, उनके सूक्ष्म निरीक्षणसे ज्ञात होता है कि अत्यन्त प्राचीन मूर्ति आदि दिगम्वर - मुद्रा से अकित है । दिगम्बर
could not compel the processionists to interfere then worship while the mosque of temple on the ground that there was continuos worship there
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-Manzui Hassan vs Md Zaman, 23 All L. J
Puvy Council. "The first question is, is there a 11ght to conduct a leligious procession with the appropriate observances along a highway? Their Lordships think the answer in the affirmative" Privy Council Ibid
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