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प्रवुद्ध-साधक
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है । किन्तु यदि वे उपर्युक्त वर्णनके प्रकाशमें उन योगियोकी महत्ताको सोचने और समझनेका प्रयत्न करे तो उनका हृदय उन मुनीन्द्रोकी मुद्रा - महत्तासे प्रभावित हुए बिना न रहेगा। सन् १९४४ ई० के दिसम्बरमे नागपुर हाइकोर्ट के जस्टिस सर भवानीशंकर नियोगी महाशयकी अध्यक्षतामे दिगम्बर मुनि श्री सुमतिसागरजीका सार्वजनिक भाषण, हजारो व्यक्तियोकी उपस्थितिमे हुआ था । उसे सुनकर जस्टिस नियोगीजीकी आत्मा अत्यन्त प्रभावित हुई और उन्होने कहा - आज इन मुनिराजके दर्शन कर मुझे बहुत प्रकाश मिला। कहा तो ये साधु जो विना किसी परिग्रहके निश्चिन्ततापूर्वक जीवन व्यतीत करते है और कहा हम जो बहुत-सी सामग्री एकत्रित कर गान्तिलाभ करनेके लिये प्रयत्न करते हैं ।"
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जो व्यक्ति अपनी अपरिहार्य साम्प्रदायिक भ्रान्त धारणाओके कारण ऐसे तपस्वियोको देखकर क्षोभका अनुभव करते है वे नगरमें जिन मदिरदर्शन अथवा भोजन आदि आवश्यक कार्यवश साबुओको आते हुए सुन अपने मनोजमुखको दूसरी ओर मोड सकते हैं। लेकिन, इसका अर्थ यह नही है कि विश्ववन्द्य पदके धारण करनेवाले मुनियोंके नगरादिमे प्रवेश के विपयमे शिष्टाचारके नामपर वाधा उपस्थित की जाए ।
प्रीवी कौन्सिलने इस बातका स्पष्टीकरण कर दिया है कि धार्मिक जुलूस शान्तिपूर्वक आम रास्तेसे विना रोक-टोकके ले जाए जा सकते है ।
? "Persons of all sects are entitled to conduct religious processions through public streets so that they do not interfere with the ordinary use of such streets by the public and subject to such directions as the magistrate may lawfully give to prevent obstructions of the throughfare or breaches of public place and the worshippers in a mosque or temples which abutted on a highroad
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