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________________ १२६ जैनशासन बौद्ध साहित्यसे भी दिगम्बर श्रमणोका सद्भाव ज्ञात होता है । "विसाख वत्यु धम्मपदत्थकहा " मे लिखा है कि एक श्रेष्ठिके भवनमे ५०० दिगम्बर जैन साधुओने आहार किया था । दीर्घनिकाय से विदित होता हैं कि कौशल नरेश प्रसेनजित्ने 'निर्ग्रन्थों' को नमस्कार किया था । महावग्गसे ज्ञात होता है कि वैशालीमे दिगम्बर जैन श्रमणोका विहार होता था। 'महापरिनिव्वाण सुतं' धम्म पदत्थकहा मे भी निर्ग्रन्थोका उल्लेख पाया जाता है । मुसलिम समाजमे भी दिगम्बरत्वका सम्मान रहा है । आज से ३०० वर्ष पूर्व मुसलिम सत सरमद शाहजहाके राज्यमे दिगम्बरके रूपमें राजधानी देहलीमे विचरण करता था । दिल्लीमे लालकिलेके समीप में सत सरमदका मजार है, जहा सदा दर्शकोकी भीड लगी रहती है । उसके ये शब्द बडे मार्मिक है, "जिसमे दोष देखता है उसे वस्त्र पहिना देता है, जो दोषरहित है उन्हे नगा ही रहने देता है" । " आचार्य सोमदेवने यशस्तिलकचम्पूमे शकुनशास्त्रकी दृष्टिसे दिगम्बर मुनिके विहारको राष्ट्रके लिए मगलमय बताया है "पद्मिनी राजहंसारच निर्ग्रन्याश्च तपोधनाः । य देशमुपसर्पन्ति सुभिक्ष तत्र निर्दिशेत् ॥” आज के भौतिकवादी वातावरणमे किन्ही - किन्ही व्यक्तियोको शिष्टाचारके नामपर दिगम्बर मुनीन्द्रोका नगरादिमे गमनागमन अप्रिय लगता १ Historical Gleanings, P, 93-95 २. ( See also Sacred Books of the East Vol XXIII, 228 and XVII 116), vide the Digambara Saints of India 75 ३ विश्ववाणी मासिक ४, पृ० २५१, वर्ष ८ । ४ " पोशाद लिबास हरकरा ऐबे दीद । ब ऐबा रा लिबासे उरियानी दाद ||"
SR No.010053
Book TitleJain Shasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1950
Total Pages517
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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