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जैनशासन
वस्त्रादि धारण करनेवाला यदि निर्ग्रन्थ पदका वाच्य माना जाय, तो 'यथाजातरूपधर' इस शब्दके साथ अर्थका समन्वय नही होता ।
'निग्गण्ठ' शब्दका प्रकट अर्थ है 'विना गाठ वाला' । वस्तुत. दिगम्बर अथवा अचेल अवस्थामे ही यह शब्द सार्थक होता है, अन्यथा अधोवस्त्रादि की गाठोको धारण करते हुए निगण्ठ कहना सत्य विरुद्ध होगा ।
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वस्त्र धारण करते हुए अपनेको 'निर्ग्रन्था पार्श्वशिष्या वय'हम निर्ग्रन्थ हैं और भगवान् पार्श्वनाथके शिष्य है' कहनेवालोको गोशाल कहता है' - " वस्त्रादि ग्रन्थोको धारण करते हुए आप किस प्रकार निर्ग्रन्थ है । यथार्थमे वस्त्रादिके परित्यागी और शरीरके विषयमें भी उपेक्षा वृत्ति धारण करनेवाले निर्ग्रन्थ होते है ।
इस सक्षिप्त विवेचनसे अग्रेजी विश्वकोषका 'निम्गण्ठ' शब्द द्वारा दिगम्बर जैनियोका भाव अगीकार करना सत्यके सुदृढ आधारपर अवस्थित है |
ये साधक आत्म-ज्योतिके प्रकाशमे स्वयको अनुशासित करते हैं। लौकिक व्यक्तियो द्वारा मानी गई मर्यादाएँ इन महामानवोका पथप्रदर्शन नही कर सकती। जड़वादीका अन्त करण उनकी गहराईको स्पर्श न कर सके, किन्तु ज्ञान और अनुभवके धनी सत्पुरुष इस वातको स्वीकार करेंगे कि ये सन्तजन ही सपूर्ण विश्वको अपना वन्धु मान उस बन्धुत्वका सत्यतापूर्वक सरक्षण करते हैं। जिस आत्मामे अहिंसाकी ज्योति जग जाती है, उसका मनुष्योके सिवाय क्रूर पशुओ तक पर आश्चर्यप्रद प्रभाव
१ " कथन्तु यूयं निर्ग्रन्या वस्त्रादिग्रन्थधारिणः । केवलं जीविका हेतोरियं पाषण्डकल्पना || वस्त्रादिसंगरहितो निरपेक्षो वपुष्वपि । धर्माचार्यो हि यादृङ्मे निग्रंथास्तादृशाः खलु ॥” Vide-Wilson's Religous Sects of the Hindus' p. 293.
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