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प्रवुद्ध-साधक
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मुस्लिम वादशाहोके द्वारा वन्दित थे। स्मिथ महागयने अपने भारतीय इतिहासमे लिखा है कि-"यूएनसाग नामक चीनी यात्रीने सन् ६४० ई० मे दक्षिण भारतको देखा था।" वह मालकूट देशका वर्णन करते हुए लिखता है कि-"वहां दिगम्बर जैन मुनियोका बहुत बड़ा समुदाय था।
ऋग्वेदमे दिगम्बर मुनियोका उल्लेख है। विशेषज्ञ उसका सवध दिगम्बर जैन मुनियोसे बताते है । उपनिषद् साहित्य भी दिगम्बर ऋषियोके विषयमे प्रकाश प्रदान करता है। उपनिपदोमे छ प्रकारके संन्यासियोका उल्लेख है । जिनमें परमहस, भिक्षु, परिव्राजक तथा सन्यासी को नग्न रहना आवश्यक कहा है। परमहसके विषयमें जावाल-उपनिषद् मे लिखा है, "कि जो निर्गन्थ दिगम्बर मुद्रापारी तथा परिग्रह रहित होकर ब्रह्मके मार्गमें सम्यक् प्रकार संलग्न है, शुद्ध मनोवृत्ति वाला है, प्राण रक्षणके लिए भिक्षा द्वारा आहार ग्रहण करता है तथा लाभ अलाभमे समदृष्टि
१ "The Jain Acharyas-by their character. attainments and scholarship-command the respect of even Johammadan sovereigns like Allauddin and Aurangzeb Badshaha "--Prof, Iyengar's Studies in South Indian Jainism Part 2nd p. 182
3. "Hieun Tsang visited Southern India 640 A. D. and describes Malakuts country " the nude Jain saints were present in multitudes "...Smith's His. of India
p, 409
३ "मुनयो वातरशना. पिशंगा वसते मलाः। वातस्यानु घाजि यन्ति यद्देवासो अविक्षत।"-मंडल १०, ११, १३६