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जैनशासन
रहता है वह परमहंस है ।' उक्त ग्रन्थमे लिखा है कि परमहस साधु आकाश रूपी वस्त्रको धारण करता है ।"
अपने पुत्र, मित्र,
भिक्षुकोपनिष सन्यासोपनिषद्मे
नारद परिव्राजकोपनिषद्मे लिखा है कि भिक्षु कलत्र, कुटुम्बियोको छोडकर दिगम्वर होता है। तुरीयत्योपनिपद्मे भी इस बातका समर्थन है । ऐसे सन्यासीको 'ज्ञान वैराग्य-सन्यासी' कहा है, जिसने सर्व परित्याग कर दिगम्वरत्वको अगीकार किया है ।" मैत्रेय उपनिषदमे दिगम्बरत्वके साथ आनन्दकी उद्भूतिका उल्लेख है - देशकाल -विमुक्तोऽस्मि दिगवरसुखोस्म्यहम्' ।
पुराण साहित्य भी इस सवधमे महत्त्वप्रद सामग्री उपस्थित करता * । शिवपुराणमे एक कथा आई है कि शिवजीने दिगम्बर मुद्रा धारण कर देवदारु वनके आश्रमका निरीक्षण किया था । उनके हाथमे मयूरपखकी पिच्छिका भी थी । कूर्म पुराण पद्मपुराण', मे भी दिगम्बरत्व १ "यथाजात - रूपधरो निर्ग्रन्यो निष्परिग्रहस्ततद् ब्रह्ममार्गे सम्यक् सपन्नः शुद्धमानसः प्राणसधारणार्थं विमुक्तो भैक्षमाचरन्... लाभालाभयोः तमो भूत्वा... सः परमहसो नाम । "
२ "सः परमहंस आशाम्बरो म नमस्कारो न स्वाहाकारो, न निन्दा, न स्तुतिर्यादृच्छिको भवेत् स भिक्षुः ।"
३ " प्रथवा यथा विधिश्चेज्जातरूपधरो भूत्वा स्वपुत्र - मित्र - कलत्रबन्ध्वादीनि कौपीन दण्डमाच्छादनं च त्यक्त्वा....."
४ " सन्यस्य जातरूपधरो भवति स ज्ञानवैराग्यसन्यासी ।"
५ "विदेशोन्मत्तवेशश्चं स्तब्धलिंगो दिगम्बर..."
६ " मयूरचन्द्रिका पुञ्ज पिच्छकां धारयन् करे || - " शिवपुराण
१०-६०, ८२
७ कूर्मपुराण - उपरिभाग ३७.७ ।
८ पद्मपुराण- पातालखण्ड ७२; ३३