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जनशासन
___ परिग्रह आदिको आत्मदुर्वलताका अग न मान उसके समर्थनमे लगनेवालोके समाधानमे तार्किक अकलंकदेव कहते है कि जगत्मे विविध उपासकोके अनेक उपास्यदेव है और उनकी वेष-भूषा पृथक्-पृथक् है। किन्तु जगत्मे एक दिगम्वर मुद्राका ही व्यापक रूपसे प्रसार पाया जाता
"नो ब्रह्माकितभूतलं न च हरेः शम्भोर्न मुद्राकित नो चन्द्रार्ककरांकितं सुरपतेर्वजांकितं नैव च । षड्वक्त्राम्बुज-बौद्ध-देव-हुतभुक्यक्षोरगर्नाकितं नग्नं पश्यत वादिनो जगदिदं जैनेन्द्रमुद्राकितम् ॥"
-अकलंकस्तोत्र, ११ ॥ अपने अन्त करणमे काम-भावनाका तनिक भी विकार धारण न कर नारी जातिके लिए चित्तमे मातृत्वकी भावनाको प्रवुद्ध करनेवाले मलिन गरीर किन्तु सस्कृत आत्माधारी दिगम्बर मुनिजन जिस देशमे विहार करते है, वहाके लोग सदाचार तथा सद्भावनाओसे सम्पन्न हो सुखी रहते है। आज ऐसी पवित्र आत्माओकी अत्यन्त विरलताके कारण भारतवर्षमें श्रेष्ठ सदाचार और नैतिक जीवनमे ह्रास दिखायी देता है। पुरातन भारत गान्ति समृद्धि और अभ्युदयका केन्द्र बताया जाता है। उस समय मोहारि-विजेता दिगम्बर-मुनीन्द्रोका सर्वत्र बहु सख्यामें बिहार हुआ करता था। मेगस्थनीज़ कहता है-"जव वादशाह सिकन्दर भारत मे आया था तब उसने तक्षशिलामे कुछ दिगम्वर मुनियोके दर्शन किए थे। प्रो० आयंगरने लिखा है कि-"ये जैन आचार्य अपने चरित्र, सिद्धियो और ज्ञानके कारण अलाउद्दीन और औरगजेव जैसे
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? "Vhen Alexander came to India he saw some naked saints in Taxıla and took one of them with him.” Magesthenes