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सयम बिन घडिय म इक्क जाहु
सत्पुरुषोने अचौर्याणुव्रतमे साधकको दूसरेकी रखी हुई, गिरी हुई, भूली हुई और विना दी हुई वस्तुको न तो ग्रहण करनेकी और न अन्यको देनेकी आना दी है।
ब्रह्मचर्याणुव्रतके परिपालन निमित्त बताया है कि वह पापसवयका कारण होनेसे स्वय पर-स्त्री सेवन नहीं करता और न अन्यको प्रेरणा ही करता है। गृहस्थकी भाषामे इसे स्थूल ब्रह्मचर्य, परस्त्रीत्याग अथवा स्व-स्त्रीसतोप व्रत कहते है।
इच्छाको मर्यादित करनेके लिए वह गाय आदि धन, धान्य, रुपयापैसा, मकान, खेत, वर्तन, वस्त्र आदिको आवश्यकताके अनुसार मर्यादा वाधकर उनसे अधिक वस्तुओके प्रति लालसाका परित्यागकर परिग्रहपरिमाणव्रतको धारण करता है। इस व्रतमें इच्छाका नियन्त्रण होनेके कारण इसे इच्छापरिमाण नाम भी दिया गया है। ___ पूर्वोक्त हिंसा, झूठ, चोरी, कुगील और परिग्रहके त्यागके साथ मद्य, मास और मधुके त्यागको साधकके आठ मूलगुण कहे है। वर्तमान युगकी उच्छ खल एव भोगोन्मुख प्रवृत्तिको लख्यमे रखकर एक आचार्यने इस प्रकार उन मूल गुणोकी परिगणना की है
"मद्य, मास, मधु, रात्रिभोजन और पीपल, ऊमर, वड़, कठूमर, पाकर सदृश त्रस-जीवयुक्त फलोके सेवनका त्याग, अरिहन्त, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय और साधु नामक अहिंसाके पथमे प्रवृत्त पच परमेष्ठियोकी स्तुति, जीवदया तथा पानीको वस्त्र द्वारा भली प्रकार छानकर पीना यह आठ मूलगुण है।' ___ जैसे मूलके शुद्ध और पुष्ट होनेपर वृक्ष भी सवल और सरस होता है, उसी प्रकार मूलभूत उपर्युक्त नियमो द्वारा जीवन अलकृत होनेपर साधक मुक्तिपथमे प्रगति करना प्रारभ कर देता है। मद्य और मासकी सदोपता तो धार्मिक जगत्के समक्ष स्पष्ट है, किन्तु आजके युगमे अहिंसात्मक
२ सागारधर्मामृत २०१८