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सयम बिन घडिय म इक्क जाहु
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युग ज्ञानके गीत सुनकर आनन्दविभोर हो झूमने-सा लगता है, किन्तु बिना पुण्याचरणके यथार्थ आनन्दका निर्झर नही बहता । आनन्दरूपी सुवाससे युक्त कमलपुष्पके नीचे कण्टकोका जाल है। उनसे डरनेवाले को पकजकी प्राप्ति और उसके सौरभका लाभ कैसे हो सकता है ? अनन्तकालसे लगी हुई दुर्वासना और विकृतिको दूर करना सम्यक्चारित्रका सहयोग पाये बिना असम्भव है | अत: आगे साधनाके विशिष्ट अगभूत आचारके विषयमे विचार करना आवश्यक प्रतीत होता है।
संयम बिन घडिय म इक्क जाहु
भारतीय साहित्यका एक बोधपूर्ण रूपक है जिसे रूसके नामाकित विद्वान, टाल्स्टायने भी अपनाया है । एक पथिक किसी ऊँचे वृक्षकी शाखापर टॅगा हुआ है, उस शाखाको धवल और कृष्ण वर्णवाले दो चूहे काट रहे है। नीचे जडको मस्त हाथी अपनी सूंडमे फँसा उखाड़ने की तैयारी है । पथिकके नीचे एक अगाध जलसे पूर्ण तथा सर्प-मगर आदि भयकर जन्तुओंसे व्याप्त जलाशय है । पथिकके मुखके समीप एक मधुमक्खियोका छत्ता है जिससे यदा-कदा एकाध मधु-बिन्दु टपक कर पथिकको क्षणिक आनन्दका भान कराती है। इस मधुर रससे मुग्ध हो पथिक न तो यह सोचता है कि चूहोके द्वारा शांखाके कटनेपर मेरा क्या हाल होगा? वह यह भी नही सोचता कि गिरनेपर उस जलाशयमे वह भयकर जन्तुओका ग्रास बन जायगा । उसके विषयान्ध हृदयमे यह भी विचार पैदा नही होता, कि यदि हाथीने जोरका झटका दे वृक्षको गिरा दिया तो वह किस तरह सुरक्षित रहेगा ? अनेक विपत्तियो के होते हुए भी मधुकी एक विन्दुके रस-पानकी लोलुपतावश वह सब बातोको भूला हुआ है। कोई विमानवासी दिव्यात्मा उस पथिकके सकटपूर्ण भविष्यके कारण अनुकम्पायुक्त हो उसे समझाता है और अपने साथ निरापद