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जनशासन
स्थानको ले जानेकी सच्ची तत्परता प्रदर्शित करता है। किन्तु, यह उनकी वातपर तनिक भी ध्यान नहीं देता और इतना ही कहता है कि मुझे कुछ थोडा-सा मधु-रस और ले लेने दो। फिर मैं आपके साथ चलूगा। परन्तु उस विषयान्ध पथिकको वह अवसर ही नही मिल पाता कि वह विमानमे बैठ जाए, कारण इस वीचमे शाखाके कटनेसे और वृक्षके उखडनेसे उसका पतन हो जाता है। वह अवर्णनीय यातनाओके साथ मौतका ग्रास बनता है।
इस रूपकमे ससारी प्राणीका सजीव चित्र अकित किया गया है। पथिक और कोई नही, ससारी जीव है, जिसकी जीवन-शाखाको शुक्ल और कृष्ण पक्ष रूपी चूहे, क्षण-क्षणमे क्षीण कर रहे है। हाथी मृत्युका प्रतीक है और भयकर जन्तु-पूर्ण सरोवर नरकादिका निदर्शक है। मधुविन्दु सासारिक क्षणिक सुखकी सूचिका है। विमानवासी पवित्रात्मा सत्पुरुपोका प्रतिनिधित्व करता है । उनके द्वारा पुन पुन कल्याणका मार्ग-विषयलोलुपताका त्याग वताया जाता है । किन्तु, यह विषयान्ध तनिक भी नही सुनता।
वास्तवमे जगत् का प्राणी मधु-विंदु तुल्य अत्यन्त अल्प सुखाभाससे अपने आत्माकी अनन्त लालसाको परितृप्त करना चाहता है, किन्तु आगा की तृप्ति होनेके पूर्व ही इसकी जीवन-लीला समाप्त हो जाती है। महाकवि भूधरदास मोही जीवकी दीनतापूर्ण अवस्थाका कितना सजीव चित्रण करते है
"चाहत हो धन लाभ किसी विध, तो सब काज सरै जियरा जी। गेह चिनाय करौं गहना कछ, व्याह सुता-सुत बांटिये भाजी॥ चिन्तत यौ दिन जाहिं चले, जम प्रान अचानक देत दगा जी। खेलत खेल खिलारि गए, रहि जाय रुपी सतरंजको बाजी॥"
इस मोही जीवकी विचित्र अवस्था है। वाह्य पदार्थोके सग्रह, उपयोग, उपभोगके द्वारा अपने मनोदेवता तथा इन्द्रियोको परितृप्त करनेका निरन्तर प्रयत्न करते हुए भी इसे कुछ साता नहीं मिलती।