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________________ श्रीकुन्दकुन्दाचार्य और उनके ग्रन्थ प्राकृत दिगम्बर जैनवाङ मयमें सबसे अधिक ग्रन्थ (२२ या २३ ) श्रीकुन्दकुन्दाचार्य के उपलब्ध है, जो ८४ पाहड ग्रन्थोंके कर्ता प्रसिद्ध हैं और जिनके विदेह-क्षेत्रमें श्रीसीमन्धर-स्वामीके समवसरणमें जाकर साक्षात् तीर्थकरमुख तथा गणधरदेवसे बोध प्राप्त करनेकी कथा भी सुप्रसिद्ध है और जिनका समय विक्रमकी प्रायः प्रथम शताब्दी माना जाता है । ___ यहां पर मै इन ग्रन्थकार-महोदयके सम्बन्धमें इतना और बतला देना चाहता हूँ कि इनका पहला-सम्भवतः दीक्षाकालीन नाम पद्मनन्दी था t; परन्तु ये कोण्डकुन्दाचार्य अथवा कुन्दकुन्दाचार्य के नाममे ही अधिक प्रसिद्धको प्राप्त हुए हैं, जिसका कारण 'कोंण्डकुन्दपुर' के अधिवासी होना बतलाया जाता है, __ॐ देवसेनाचार्यने भी, अपने दर्शनसार (वि० सं० ६६० ) की निम्न गाथामे, कुन्दकुन्द ( पद्मनन्दि ) के सीमंधर-स्वामीसे दिव्यज्ञान प्राप्त करनेकी बात लिखी है; जइ उमणंदि-णाहो सीमंधरसामि-दिव्वणाणण । ण विवोहइ तो समणा कहं सुमग्गं पयाणंति ॥४३॥ + तस्यान्वये भूविदिते बभूव यः पद्मनन्दि-प्रथमाभिधानः । श्रीकौडकुन्दादिमुनीश्वरराख्यस्ससंयमादुद्गत-चारणाद्धिः ।। --श्रवणवेल्गोल-शिलालेख नं० ४०
SR No.010050
Book TitleJain Sahitya aur Itihas par Vishad Prakash 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Shasan Sangh Calcutta
Publication Year1956
Total Pages280
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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