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वीर शासन की उत्पत्ति उसका समय और स्थान
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समाधान — इसलिये कि, केवलज्ञानके समुत्पन्न होनेपर भी उस समय तीर्थकी उत्पत्ति नहीं हुई ।
शंका - दिव्यध्वनिकी उस समय प्रवृत्ति क्यों नहीं हुई ?
समाधान-गणीन्द्रका प्रभाव होनेसे नहीं हुई ।
शंका- सौधर्म इन्द्रने उसी समय गरणीन्द्रकी खोज क्यों नहीं की ?
समाधान -- काललब्धिके बिना देवेन्द्र असहाय था और उसमें उस खोजकी शक्तिका प्रभाव था ।
शंका- अपने पादमूलमें जिसने महाव्रत ग्रहण किया है उसे छोड़कर अन्य - को उद्देश्य करके दिव्यध्वनि क्यों प्रवृत्त नहीं होती ?
समाधान - ऐसा ही स्वभाव है, और स्वभाव पर - पर्यनुयोगके योग्य नहीं होता, अन्यथा कोई व्यवस्था नहीं रहेगी ।
इस शंका-समाधान दिगम्बर- मान्यतानुसार केवलज्ञानकी उत्पत्तिके दिन वीरभगवानकी देशनाके न होने और ६६ दिन तक उसके बन्द रहनेके कारणका भली प्रकार स्पष्टीकरण हो जाता है ।
देवगण
श्रीवृषभाचार्य के ‘तिलोयपण्णत्ती' नामक ग्रन्थमे भी, जिसकी रचना ताम्वरीय ग्रागम ग्रन्थों और ग्रावश्यक नियुक्ति ग्रादिगे पहले हुई है, यह स्पष्ट जाना जाता है कि वीर भगवानके शासनतीर्थकी उत्पत्ति पंचशैलपुर ( राजगृह ) के विपुलाचल पर्वतपर श्रावरण- कृष्ण प्रतिपदाको हुई है; जैसा कि नीचे के कुछ वाक्योंमे प्रकट है
सुर-खेर महरणे गुणणा मे पंचसेलर | विउम्मि पव्वदवरे वीर जिरो अत्थकत्तारो ||६५|| वासस्स पढममासे सावराणामम्मि बहुलपडिवाए । अभिजीत्तम्मिय उपपत्ती धम्मतित्थस्स || ६ ||
ऐसी स्थितिमें श्वेताम्बरों की मान्यताका उक्त द्वितीय तृतीय समवसरण जैसा थोड़ा सा मतभेद राजगृहमे ग्रागामी श्रावण कृष्णा प्रतिपदादिको होनेवाले वीरशासन - जयन्ती - महोत्सवमें उनके सहयोग देने और सम्मिलित होनेके लिये कोई बाधक नहीं हो सकता - खासकर ऐसी हालतमे जब कि वे जान रहे हैं कि जिस श्रावण कृष्ण प्रतिपदाको दिगम्बरश्रागम राजगृहमें वीरभगवानके समवसरण -