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जैन साहित्य और इतिहासपर विशद प्रकाश
का होना बतला रहे हैं उसी श्रावरण- कृष्ण प्रतिपदाको श्वेताम्बर आगम भी वहां वीरप्रभुके समवसरणका अस्तित्व स्वीकार कर रहे हैं, इतना ही नहीं किन्तु वहां केवलोत्पत्तिके अनन्तर होनेवाले उस सारे चातुर्मास्यमें समवसरणंका रहना प्रकट कर रहे हैं। इसके अलावा यह भी मान रहे हैं कि 'राजगृह नगर महावीरके उपदेश और वर्षावासके केन्द्रोंमें सबसे बड़ा और प्रमुख केन्द्र था और उसमें दोसीसे प्रषिकवार समवसरण होनेके उल्लेख जैनसूत्रोंमें पाये जाते हैं ।
श्राशा है शासन प्रभावनाके इस सत्कार्यमें दिगम्बरोंको अपने श्वेताम्बर नौर स्थानकवासी भाइयोंका अनेक प्रकारसे सद्भावपूर्वक सहयोग प्राप्त होगा । इसी आशाको लेकर आगामी वीर शासन - जयन्ती - महोत्सवकी योजनाके प्रस्तावमें उक्त दोनों सम्प्रदायोंके प्रमुख व्यक्तियोंके नाम भी साथमें रक्खे गये हैं ।
अब में इतना और बतला देना चाहता हूँ कि वीर-शासनको प्रवर्तित हुए गत श्रावण कृष्णा-प्रतिपदाको २४६६ वर्ष हो चुके हैं और अब यह २५००व वर्ष चल रहा है, जो आषाढ़ी पूर्णिमाको पूरा होगा । इसीसे वीरशासनका श्रद्धद्वयसहस्राब्दि - महोत्सव उस राजगृहमें ही मनानेकी योजना की गई है जो वीरशासनके प्रवर्तित होनेका प्राद्यस्थान अथवा मुख्यस्थान है । अतः इसके लिये भीका सहयोग वाँछनीय है-सभीको मिलकर उत्सवको हर प्रकारसे सफल बनाना चाहिये ।
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इस अवसरपर वीरशासनके प्रेमियोंका यह खास कर्तव्य है कि वे शासनकी महत्ताका विचारकर उसके अनुसार अपने ग्राचार - विचारको स्थिर करें और लोकमें शासन के प्रचारका — महावीर सन्देशको सर्वत्र फैलानेका भरसक उशोग करें प्रथवा जो लोग शासन प्रचारके कार्य में लगे हों उन्हें मतभेदकी साधारण बातोंपर न जाकर अपना सच्चा सहयोग एवं साहाय्य प्रदान करनेमें कोई बात उठा न रक्खें, जिससे वीरशासनका प्रसार होकर लोकमें सुख-शान्तिमुलक कल्याणकी अभिवृद्धि हो सके ।
देखो, मुनिकल्यारणविजयकृत 'श्रमण भगवान महावीर पृ० ३८४ - ३८५