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________________ ६३ वीर-शासनकी उत्पत्तिका समय और स्थान वजणाण मोहए समवसरणमंडले x x x x होदु णामदिट्ठ जिणदव्वमहिमाणं देविंदसरूवावगच्छंत जीवाणमिदं जिणसव्वण्णुत्तलिगं चामरछएणहदि-साविसयम्मि दिव्वामोयगंधसुरसाराणेयमणिणिवहफुडियम्मि गंधउडिप्पासायम्मि ट्ठियसिंहासणारूढेण वड्ढमाणभडारएण तित्थुप्पाइदं । खेत्तप्परूवणा ।" इसमें अनेक विशेषणों के साथ यह स्पष्ट बतलाया है कि, 'पंचशलपुर ('राजगृह' नगर ) की नैऋति दिशामें जो विपुलाचल पर्वत है उसके मस्तकपर होनेवाले तत्कालीन समवसरण-मंडलकी गंधकुटीमें गगन-स्थित छत्रत्रयसे युक्त एवं सिंहासनारूढ हुए वर्द्धमान भट्टारक ( भ० महावीर ) ने तीर्थकी उत्पत्ति कीअपना शासनचक्र प्रवर्तित किया।' जयधवल ग्रन्थमें इतना विशेष और भी पाया जाता है कि पंचशैलपुरको, जो कि गुरगनाम था, 'राजगृह' नगरके नाममे भी उल्लेखित किया है, उसे मगधमंडलका तिलक बतलाया है और तीर्थोत्पत्तिके समय चेलना-सहित महामंडलीकराजा श्रेणिकमे उपभुक्त-उनके द्वारा शामित-प्रकट किया है। यथा:__“कत्थ कहियं ? सेणियराये सचेलणे महामंडलीए सयलवसुहामंडलं भुजते मगह-मंडलतिल अ-रायगिहणयर-णेरयि-दीसमहिछिय-वि उलगिरिपव्वर सिद्धचारणसेविए वारहगणवेहिएण कहियं ।" इसके बाद 'उर्नच' रूपसे जो गाथाएँ दी है और जो धवल ग्रन्थमें भी अन्यत्र पाई जाती हैं उनमेंसे शुरूकी डेढ़ गाथा, जिसके अनन्तरकी दो गाथाएँ पंचपर्वतोंके नाम, आकार और दिशादिके निर्देशको लिए हुए हैं, इस प्रकार हैं "पंचसेलपुरे रम्मे विउले पव्वदुत्तमे। णाणादुम-समाइराणे देव-दाणव-वंदिदे ॥शा महावीरेणत्थो कहियो भविय-लोअस्स।" क्षेत्रप्ररूपणा-सम्बन्धी इस कथनके द्वारा यह स्पष्ट किया गया है कि महावीरके शासन-तीर्थकी उत्पत्ति राजगृहकी नैऋति दिशामें स्थित विपुलाचल पर्वतपर हुई है, जो उस समय राजा श्रेणिकके राज्यमें था। ___ अब काल-प्ररूपणाको लीजिये, इस प्ररूपणामें निम्न तीन गाथामोंको एक साथ देकर अवल-सिवान्तमें बतलाया है कि-'इस भरतक्षेत्रके अवसर्पिणी
SR No.010050
Book TitleJain Sahitya aur Itihas par Vishad Prakash 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Shasan Sangh Calcutta
Publication Year1956
Total Pages280
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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