________________ 708 जनसाहित्य और इतिहासपर विशद प्रकाश 17. वसन्ततिलका-तगण,भगण,जगण, जगणपोर मन्तमें दो गुरुके क्रमको लिये हुए चतुर्दश-वर्णात्मक(८,६) चरणावृत्त का नाम 'वसन्ततिलका है। 18. 1,18 पथ्यावक्त्रअनुष्टुप-मनुष्टुपके प्रत्येक चरणमें पाठ अक्षर होते है, जिनमें ५वा लघु, ६ठा गुरु और ७वां अक्षर समचरणों (2,4) में लघु तथा विषमचरणों (1,3) में गुरु होताहै / और जिसके समचरणोंमें चार अक्षरोंके बाद 'जगण'हो उसे 'पथ्यावक्त्र-मनुष्टुप्' कहते है। 16, 20 सुभद्रिकामालती-मिश्र-यमक-नगरण, नगण, रगण और लघ-गुरुके क्रमको लिये हुए एकादशवरात्मक चरणवृत्तका नाम 'सुभद्रिका' है और नगगग, जगण, जगरण, रगण के क्रमको लिये हुए द्वादशाक्षरात्मक चरणवृत्तका नाम 'मालती' है। इन दोनोंके चरण-मिश्रण बना हुमा छन्द 'सुभद्रिका-मालनी-मिश्र-यमक' कहा जाता है। 16. वानवामिका-जिमके प्रत्येक चरगामें 16 मात्राएँ और उनमें वी तथा १२वी मात्रा लघु हों उसे 'वानवामिका' रन्द कहते हैं। 20. वेतालाय--जिसके प्रथम तृतीय (विपन / नरगों में 18 और द्वितीय, चतुर्थ : मम) चरगामें 16 मात्रा होनी: नया विम चरणोम 6 माय'. मोके और ममच गणों में 8 मावापोक बाद मग: गगा तथा लघ- गुः होते है उसे वैनानी यवन कहत है। 21, शिखरिगी-- प्रत्येक चरगम यगरग, मगराग, नगगा. मगगा, भगगग प्रोः नघ-गुरुके भ्रमको लिये हा मतदा (6.11) वर्गात्मक वनका नाम 'शिखरिणी' है। 22. उगता-जिमके प्रथम चरण में क्रमश: सगग्ग , जागा. मगग पोर लघ. द्वितीय चरणमें नगगा, मगण, जगगा और गुरु, तृतीय वरमा भगण, नगगण, जगरण और लघु गुरु तथा चौथे चरण में मगग, जगगा. सगण, जगण पोर गुरु हों उसे 'उद्गता' वन कहते है। 23. वंशस्थ-- उपर्युक्त (1) 24. आर्यागीति (स्कन्धक)-जिमके विषमचरणोंमे 12-12 और मम.