________________ 706 जैनसाहित्य और इतिहासपर विशद प्रकाश (13) कवि-काव्य-नामगर्भ-चक्रवृत्तम् गत्वैकस्तुतमेव वासमधुना तं येच्युतं स्वीशते यन्नन्यैति सुशर्म पूर्णमधिको शान्ति अजित्वाध्यना / यद्भक्त्या शमिताकृशाघमरुज तिष्ठेजनः स्वालये ये मद्भोगकठायतीव गजते ते मे जिनाः सुश्रिये // 116 / / KET" A सा ta म T बा Rel म इस चक्रवृत्त के बाहरमे 7 वे वलयमें 'शान्तिवर्मकृतं' और चौथे वलयमे 'जिनस्तुतिशत' पदोंकी उपलब्धि होती है, जो कवि और काव्यके नामको लिये हए है / कवि और काव्यके नाम विना इस प्रकार के दूसरे चक्रवृत्त 118, 113, 114, 115 नं० के हैं।