________________ 704 जैनसाहित्य और इतिहासपर विशद प्रकाश ' (10) गतप्रत्यागतपाद-पादाभ्यास यमकश्लोकः वीरावारर वारावी वररोहरोरव / / वीरावाररवारावी वारिवारिरि वारि वा // 8 // इस कोष्टकमें स्थित प्रत्येक चरणोंके पूर्वाधको उल्टा पढ़ने से उसका उत्तरार्ध बन जाता है। यह श्लोक दो पक्षरों (व, वी रावा र) से बना है। इसी प्रकारके श्लोक नं० 63, 64 है। वा रि वा | रि (11) अनुलोम-प्रतिलोम-श्लोकयुगलम् रक्ष माक्षर वामेश शमी चारुरुचानुतः / भा विभीनशनाजारुनम्रन विजरामय / / 86 / / क्षमा क्षार वा मे शशम) anचा रु/चा/नुत: ---- मोवि का नाम ना जानन विनिमय मा इस कोष्ठकमें स्थित श्लोकको उल्टा पड़नसे नीचे लिखा 87 वा इलोक बन जाता है: यमराज विनम्रन रुनानाशन भी विभो। तनु चारुरुचामीश शमवारक्ष माक्षर / / 7 // यमराज विन lalala laleler न तनु चारु रुचामी शश मेवात इस कोष्ठकमें स्थित श्लोकको उल्टा पढ़नेसे पूर्वका 86 वा श्लोक बन जाता है। इसीसे श्लोकका यह जोड़ा अनुलोम-प्रतिलोम कहलाता है।