________________ परिशिष्ट १-काव्यचित्रोंका सोदाहरण परिचय 701 यह श्लोकके प्रथमाक्षरको गर्भ में रखकर बनाया हुमा चार प्रक्षरोंवाला वह चक्रवृत्त है जिसकी चार महादिशामोंमें स्थित चारों प्रारोंके अन्तमें भी वही अक्षर पड़ता है / अन्त और उपान्त्यके अक्षर दो दो बार पढ़े जाते हैं / 23, 24 नम्बरके श्लोक भी ऐसे ही चक्रवृत्त है / (5) चक्रश्लोकः वरगोरतनुन्देव वन्दे नु त्वाक्षयार्जव / वर्जयाति त्वमार्याव व मानोरुगौरव // 26 // एवं 53, 54 श्लोको यह श्लोकके प्रथमाक्षरको गर्भ में रखकर बनाया दृपा चार मारोंवाला पक्रयत्त है। इसके प्रथमादि कोई कोई रक्षा चक्र एक बार लिखे जाकर भी भनेक बार पढ़ने में माते है / 53 54 नम्बरके श्लोक भी ऐसे ही चळवृत्त है: