________________ 64 700 जैनसाहित्य और इतिहासपर विशद प्रकाश इसी प्रकार 4, 18, 19, 20, 21, 27, 36, 43, 44, 56, 60, 62, श्लोकोंको जानना। (3) गतप्रत्यागतादः भासते विभुतास्तोना ना स्तोता भुवि ते सभाः / याः श्रिताः स्तुत गीत्या नु नुत्या गीतस्तुताः श्रिया // 10 // |भास ते विभुता तो! ना याः श्रिताः स्तुत गी! त्या नु इस कोष्टकमें स्थित श्लोकके प्रथम-तृतीय चरणोंको उलटा पढ़नसे क्रमश: द्वितीय-चतुर्थ चरण बन जाते है। इसी प्रकार के दलोक नं० 83, 88, 65 है। (4) गर्भ महादिशि चकाक्षरश्चतुरक्षरश्चक्रश्लोकः नन्धनन्तद्धयनन्तन नन्तनम्तभिनन्दन / नन्दनर्द्धिरनम्रो न नभ्री नष्टोभिनन्दा न ||2||