________________ परिशिष्ट 1. काव्यचित्रोंका सोदाहरण परिचय समन्तभद्रकी स्तुतिविद्या (ले०२०) से सम्बद्ध काव्य-चित्रों के कुछ उदा. हरण अपने-अपने काव्यके साथ यहाँ दिये जाते हैं, जिसमे उनके विषयका यथेष्ट परिज्ञान हो सके / साथमें चित्रोंका ठोक परिचय प्राप्त करने के लिये जरूरी मूचनाएँ भी दी जा रही है / इन सबको देने से पहले चित्रालङ्कार-सम्बन्धी कतिपय सामान्य नियमोंका उल्लेख कर देना प्रावश्यक है, जिसमे किमी प्रकारके भ्रमको प्रयवा चित्रभङ्गकी कल्पनाको कही कोई अवकाश न रहे(१) "नाऽनुम्वार-विसर्गौ च चित्रभङ्गायसंमतौ।" 'अनुस्वार पौर विसर्गका अन्नर होने में चित्राऽलङ्कार भग नहीं होता।' (2) “यमकादी भवेदैक्यं डलो रखो वालथा।' 'यमकादि अलङ्कारोंमें इ-ल, र ल और व-बमें प्रभेद होना है।' (3) यमकादि चित्रालङ्कारोंमें अन्य प्रभेदोंकी तरह कहीं कहीं श- पोर न-ग में भी प्रभेद होता है; जमा कि निम्न मग्रह इलोकमे जाना जाता है "यमकादी भवदेक्यं डलयो रल योर्वयोः / शपयान गयोश्चान्त मविसर्गाऽविसर्गयोः। मबिन्दुकाऽबिन्दुकोः म्यादभेद-प्रकल्पनम् / / " (1) मुरजबन्धः श्रीमज्जिनपदाच्याशं प्रतिपद्यागसां जये / कामस्थानप्रदानेशं स्तुति विद्यां प्रसाधये // 1 // XXXXXXXX /