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________________ समन्तभद्रका समय-निर्णय 663 है, जिसका अर्थ लेविस राइसने who made the Gang kingdom दिया है-अर्थात् यह बतलाया है कि जिन्होंने गंगराज्यका निर्माण किया' (वे सिंहनन्दी प्राचार्य)। सिंहनन्दीने गंगराजको स्थापनामें क्या सहायता की थी, इसका कितना ही उल्लेख अनेक शिलालेखोंमें पाया जाता है, जिसे यहां पर उद्धृत करनेकी जरूरत मालूम नहीं होती-श्रवणबेल्गोलका वह ५४(६७)वाँ शिलालेख भी सिंहनन्दी और उनके छात्र ( कोंगुरिणवर्मा ) के साथ घटितघटनाको कुछ सूचनाको लिये हए है। यहाँपर मैं इतना और भी प्रकट कर चाहता देना हूं कि सन् 1925 (वि० सं० 1982) में मणिकचन्द जैनग्रन्थमालासे प्रकाशित रत्नकरण्डप्रावकाचारकी प्रस्तावनाके 'समय-निरणय' प्रकरण में (पृ.११७) मैंने श्री लेविस राइस माहबके उक्त अनुमान पर इम प्राशयको प्रापनि की थी कि उक्त शिलालेख में 'तत:' या 'नमन्वय' प्रादि शब्दोके दाग सिंहनन्दीका समन्तभद्रके बादमें होना ही नही भूचित किया बल्कि कुछ गुरुवोका स्मरण भी क्रमरहित प्रागे पीछे पाया जाता है. जिसमे शिलालेख कालक्रममे म्मरण या क्रमोल्लेखकी प्रकृतिका मालूम नहीं होता, और इसके लिए उदाहरणम्पमें पात्र सरोका श्रीप्रकलंकदेव भोर श्रीवद्धं देवने : पूर्व म्मरण किया जाना मूचित किया था। मेरी यह भापति स्वामी पत्रकेमरी और उन श्रीविद्यानन्दको एक मानकर की गई थी जो कि अष्टमहमी प्रादि ग्रन्थोंके कर्ता है, और उनके इस एकव्यक्तित्वके लिये 'सम्यक्त्वप्रकाश' ग्रन्थ तथा वादिचन्दमूरिका 'ज्ञानमूर्योदय' नाटक पोर जनहितपी' भा६. प्रक, 10436 - 440 को देखनेकी प्रेरणा की गई थी। क्योकि उस समय प्राय: इन्ही प्राधागेपर समाजमे दोनोंका व्यक्तिस्व एक माना जाता था, जो कि एक भारी भ्रम था / परन्तु बादको मैने 'स्वामी पात्रोसरी और विद्यानन्द' नामक अपने खोजपूर्ण निमन्धके दो लेखों यथा:-योऽमी पातिमाल द्विपद्धल-शिला-म्तम्भावली-खण्डन ध्यानामि: पटुरहंतो भगवतस्मोऽस्य प्रसादीकृतः / मात्रम्यापम मिहनन्दि-मुनिना नो चेकय वा शिला. स्तम्भोराज्य-रमागमाध्व-परिधस्तेनासिखण्डोधन: // 6
SR No.010050
Book TitleJain Sahitya aur Itihas par Vishad Prakash 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Shasan Sangh Calcutta
Publication Year1956
Total Pages280
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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