________________ . समन्तभद्रका समय-निणय यही समय सिंहनन्दीका होनेमे समन्तभद्रका समय निश्चित रूपसे ईसाकी पहली शताबी ठहरता है-दूसरी नहीं। . श्रवणबेल्गोलके उक्त शिलालेखमें, जो शक संवत् 1050 का लिखा हुमा है, यद्यपि 'ततः' या 'तदन्वय' जैसे शब्दोंके प्रयोगद्वारा ऐसी कोई सूचना नहीं की गई जिसमे यह निश्चितरूपमें कहा जासके कि उसमें पूर्ववर्ती प्राचार्यों प्रथव! ग्ररुवोंका स्मरण कालक्रमकी दृष्टिसे किया गया है परन्त उससे पूर्ववर्ती शाकमवत् 66 के लिखे हुए दो शिलालेखों और उत्तरवर्ती शक संक 1066 के लिखे एक शिलालेखमे समन्तभद्रके बाद जो उन मिहनधी प्राचार्यका उल्लेख है वह रूपमे यह बतला रहा है कि गंग राज्य के संस्थापक प्राचार्य मिहनन्दी स्वामी ममन्तभद्र के बाद हुए है / ये तीनों शिलालेख शिमोगा जिलेके नगरनाल्नुके में हुमत्र म्यानमे प्राप्त हुए हैं, क्रमश: नं. 35, 36, 37 को लिये हा है और एपिग्रंकिका काटिकाकी पाठवीं जिल्दमें प्रकाशित हुए है / यहाँ उनके प्रस्तुत विषयसे मम्बन्ध रखने वाले प्रशों को उद्धृत किया जाता है, जो कनडी भाषा में है / इनमेसे 36 श्री. 37 नम्बरके शिलालेखों प्रस्तुत अंश प्राय: समान है इमोसे 363 शिलालेखसे ३७वेमें जहा कहीं कुछ भेद है उसे वकटमे नम्बर 7 के साथ दे दिया गया है ....... भद्रवाहस्वामीगलिन्द इतकलिकालवर्तनेयिं गणमेनं पुद्विद् अवर अन्यगक्रमदि कलिकालगणधरु शास्त्रकर्तुगलुम एनिसिद समन्तभद्रवामांगल अचशिप्यमंतान शिवकट चाच.य्यर प्रवर्ति वरदत्ताचाप्यर प्रवरि तत्वार्थसूत्रकतुगल एनिम्द् िभायंदेवर प्रति | गगराज्यम माडिद सिंहनन्द्या चायर अवरिन्द् एकसधि-मुमतिभट्टारकर अवर.... . 35) ___ ....... अनकेलिगल निमिद (एनिय३७ ) भद्रबाहम्बामिगल गलंग३७) मोदलागि पलम्बर (हनम्बर 7) प्राचाय्यर पोदिम्बलियं ममन्नभद्रस्यामिगल उर्मायसिहर वरप्रन्ययोल / अनन्रं 37) गंगराज्यमं माडिद मिहनन्याचार प्रवरि.........।" (नं. 36,53) 353 शिलालेख में यह उल्लेख है कि भववाहस्वामीके बाद यहां कलिकालका प्रवेश हुमा-उसका वर्सना भाराम हुमा, नणमंद उत्पन्न हुमा पोर