________________ समन्तभद्रका समय-निर्णय दिगम्बर जैनसमाजमें स्वामी समन्तभद्रका समय माम तौरपर विक्रमकी दूसरी शताब्दी माना जाता है। एक 'पट्टावली' में शक सं०६० (वि० सं० 165) का जो उनके विषयमें उल्लेख है वह किसी घटना-विशेषकी दृष्टिको लिये हए जान पड़ता है। उनका जीवन-काल अधिकांगमें उससे पहले तथा कुछ बादको भी रहा हो सकता है। श्वेताम्बर जनसमाजने भी ममन्तभद्रको अपनाया है और अपनी पट्टावलियों में उन्हें 'मामन्तभद्र' नामसे उल्लेखित करते हए उनके ममयका पट्टाचार्य-रूपमें प्रारम्भ वीरनिर्वाग्ग-संवत् 643 (वि० सं० 173) मे हुप्रा बतलाया है। माय हो. यह भी उल्लेखित किया है कि उनके पट्टशिष्यने वीरनि० म० 665 (वि० सं० 225 ) में एक प्रतिष्ठा कराई है, जिममे उनके समयकी उतरावधि विक्रमकी तीमरी शनाब्दीके प्रथमचरण तक पहुँन जाती है / इमसे समय-मम्बन्धी दोनों मम्प्रदायोंका कथन मिल जाता है और प्राय: एक ही ठहरता है। उक्त जैन पदावली-मान्य शक सं०६० (ई० सं० 138 ) वाले ममयको डाक्टर प्रार० जी० भाण्डारकरने अपनी 'मी हिस्टरी माफ़ डेक्कन में, मिस्टर लेविम राइमने अपनी 'इम्किाशंस ऐट श्रवणबेलगोल' नामक पुस्तकको प्रस्तावना नया 'काटक-गब्दानशामन की भूमिका में, मेमर्स मारल एण्ड एम.. जी० नमहानायने अपने 'कनाटक कविरिते' प्रथमे प्रोर मिस्टर एडवर्ड पो. + यह पट्टावली हस्तलिखित संस्कृत ग्रंथों के अनुसन्धान-विषयक डा. भाण्डारकरकी सन् 1883.84 की अंग्रेजी रिपोटंके पृष्ट 320 पर प्रकाशित हुई है। कुछ पट्टावलियोंमें यह समय वीर नि० स० 565 अर्थात् वि. सवत् 125 दिया है जो किसी गलतीका परिणाम है और मुनिकल्याणविजयने अपने द्वारा सम्पादित 'तपागच्छ-पट्टावली में उसके सुधारकी सूचना भी की है। (r) देखो, मुनिकल्याणविजय द्वारा सम्भावित 'तपागच्छ-पट्टावली पृ०७६.८१६..