________________ 688 जैनसाहित्य और इतिहासपर विशद प्रकाश द्वारा सेवा किए जाएँ, प्राप्त हों वा अपनाए जायें वे सब 'पार्य' है। और इस तरह गुरणीजन तथा गुणीजन जिन्हें अपनालें वे प्रगुरणी भी सब मार्य ठहरते हैं। शक-यवनादिकोंमें भी काफी गुणीजन होते है-बड़े-बड़े विद्वान्, राजा तथा राजसत्ता चलानेवाले मन्त्री प्रादिक भी होते है-वे सब भायं ठहरेंगे। और जिन गुणहीनों तथा मनक्षर म्लेच्छोंको प्रादिपुराणके निम्न वाक्यनुसार कुल. शुद्धि मादिके द्वारा प्रायं लोग अपनालेगे, वे भी प्रार्य होजावेंगे-- स्वदेशेऽनक्षरम्लेच्छान प्रजाबाधाविधायिनः / कुलशुद्धिप्रदानायैः स्वसाकुर्यादुपक्रमैः // इससे मार्य-म्लेच्छ की समस्या मुलझने के बजाय और भी ज्यादा उलझ जाती है। अतः विद्वानोंम निवेदन है कि वे इस समस्याको हल करने का पूरा प्रयत्न करें-इस बातको खोज निकालें कि वास्तवमें मायं किसे कहते हैं पौर म्लेच्छ,' किसे ? दोनोंका व्यावतंक लक्षण जनसाहित्यपरमे क्या ठीक बैठता है ? जिनमें सब गड़बड़ मिटकर सहज ही मबको प्रायं पोर म्लेच्छ का परिज्ञान हो सके।