SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 690
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 686 जैनसाहित्य और इतिहासपर विशद प्रकाश व्यावृत्ति नहीं होती-ठीक पहचान नहीं बनती। और इसलिये उक्त सब लक्षण सदोष जान पड़ते हैं। अब दिगम्बर ग्रन्थोंको भी लीजिए / तत्त्वार्थसूत्रपर दिगम्बरोंकी सबसे प्रधान टीकाए सर्वार्थ सिद्धि, राजवातिक तथा श्लोकवातिक है। इनमेंसे किसीमें भी म्लेच्छका कोई लक्षण नहीं दिया-मात्र म्लेच्छोंके अन्तरदीपज और कमभूमिज ऐसे दो भेद बतलाकर अन्तरद्वीपजोंका कुछ पता बतलाया है और कमभूमिज म्लेच्छोंके विषयमें इतना ही लिख दिया है कि 'कर्मभूमिजा: शकयवनशबरपुलिन्दादयः' (सर्वा०, राज.)-प्रर्थात् शक, यवन, शबर पोर पुलिन्दादिक लोगोंको कर्मभूमिजम्लेच्छ समझना चाहिए। इलोकवातिकमे थोड़ामा विशेष किया है-प्रथात् यवनादिकको म्लेच्छ बतलानेके भनिरिक्त उन लोगोंको भी म्लेच्छ बतला दिया है जो यवनादिकके प्राचारका पालन करते हों / यषा कर्मभूमिभवा म्लेच्छाः प्रसिद्धा यवनादयः / भ्युः परे च तदाचारपालना बहुधा जनाः / / परन्तु यह नहीं बतलाया कि यवनादिकका वह कौनमा प्राचार-व्यवहार है जिसे लक्ष्य करके ही किमी समय उन्हें 'म्लेच्छ' नाम दिया गया है, जिससे यह पता चल मकता कि वह प्राचार इम ममय भी उनमें भवशिष्ट है या कि नहीं और दूसरे प्रार्य कहलानेवाले मनुष्यों में तो वह नहीं पाया जाना ! हो,इसमे इतना प्रामास जरूर मिलता है कि जिन कमभूमिजोंको म्लेच्छ नाम दिया गया है वह उनके किसी प्राचारभेदके कारण ही दिया गया है-देशभेदके कारण नहीं। ऐसी हालतमें उस प्राचार-विशेषका स्पष्टीकरण होना और भी ज्यादा जरूरी था, तभी प्रार्य-म्लेच्छकी कुछ व्यावृति अथवा ठीक पहचान बन सकती थी। परन्तु ऐसा नहीं किया गया, और इसलिए प्रार्य-लेकी समस्या ज्यों की त्यों खड़ी रहती है-यह मासूम नहीं होता कि निश्चितरूपसे किसे 'माय' कहा जावं और किसे 'लेच्छ! श्लोकवातिकमें श्रीविद्यानन्दाचार्यने इतना और भी लिखा है "सच्चोत्रोदयादेरार्याः, नीनोत्रोदयादेष म्याः / " .
SR No.010050
Book TitleJain Sahitya aur Itihas par Vishad Prakash 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Shasan Sangh Calcutta
Publication Year1956
Total Pages280
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy