________________ आर्य और म्लेच्छ प्राोंके लिए जो भाषा व्यक्त हो वह अनार्यों के लिए अव्यक्त होती है और इस तरह मनायं लोग परस्परमें अव्यक्त भाषा न बोलनेके कारण मार्य हो जावेगे तथा प्रायं लोग ऐसी भाषा बोलने के कारण जो अनार्योंके लिए अव्यक्त है-उनकी समझमें नहीं भाती-म्लेच्छ ठहरेंगे। दूसरे, परस्परके सहवास मौर अभ्यासके द्वारा जब एक वर्ग दूसरे वर्गकी मापासे परिचित हो जावेगा तो इतने परसे ही जो लोग पहले म्लेच्छ समझे जाते थे वे म्लेच्छ नहीं रहेंगेशक-यवनादिक भी म्लेच्छत्वकी कोटिने निकल जाएंगे, प्रार्य हो जावेगे। इस के सिवाय, ऐसे भी कुछ देश है जहाँके प्रायोकी बोली-भापा दूसरे देशके प्रायं लोग नहीं समझते है, जैसे कन्नड-तामील-तेलगु भाषाम्रोको इधर यू०पी० तथा पंजाबके लोग नहीं समझते / प्रत: इधरको दृष्टिसे कन्नड-तामील-तेलग भाषामोंके बोलनेवालों तया उन भाषामोंमें जैन ग्रंथोंकी रचना करनेवालोको भी लेच्छ कहना पड़ेगा और यो परम्परमे बहन ही व्याघात उपस्थित होगान म्लेच्छन्वका ही कोई ठोक निर्णय एवं व्यवहार बन सकेगा मोर न पायं. त्वका ही। रही शिष्ट-मम्मत-भाषादिकके व्यवहारोंकी बात, जब केवली भगवानकी वाणीको अठारह महाभाषामों तथा मातसो लघु भाषामोंमे अनुवादित किया जाता है तब ये प्रचलित मन भाषाएं तो शिष्ट-सम्मत-भाषाए' ही मममी जायेंगी, जिनमें अरबी, फामों, लेटिन, जर्मनी, अंग्रेजी, फ्रांसीसी, चीनी और जापानी प्रादि मभी प्रधान प्रधान विदेशी भापानोका समावेश हो जाता है। इनसे भिन्न तथा बाहर दूसरी और कौनमी भाषा रह जाती है जिसे म्लेच्छोकी भाषा कहा जाय ? बाकी दूसरे शिष्ट-मम्मत-व्यवहागेकी बात भी ऐसी ही है-कुछ व्यवहार ऐसे है जिन्हें हिन्दुस्तानी प्रमभ्य समझते है और कुछ व्यवहार एमे है जिन्हें विदेशी लोग प्रसभ्य बतलाते है और उनके कारण हिन्दुस्तानियोको 'प्रमभ्य'-प्रशिष्ट एवं Uncivilized समझते हैं। साथ ही. कुछ व्यवहार हिन्दुस्तानियोंके ऐसे भी है जो दूसरे हिन्दुस्तानियोंकी दृष्टिमें असम्म है और इसी तरह कुछ विदेशियोंके व्यवहार दूसरे विदेशियोंकी दृष्टिमें भी ममम्य है। इस तरह शिष्टपुरुषों नया शिष्टसम्मत व्यवहारोंकी बात विवादा. पन्न होनेके कारण इतना कह देने मात्रसे ही पार्य पौर म्लेच्छको कोई