________________ आर्य और म्लेच्छ म्लेच्छ-विषयक प्रश्न ( से कि तं मिलिक्खू ?) का उत्तर देते हुए इतना ही "मिलल प्रणेगविहा पएणत्ता, तं जहा-सगा जवणा चिलाया सबर-बब्बर-मुरुडोड-मडग-णिएणग-पकणिया कुलक्ख-गोंड-सिंहलपारसगोधा कोंच-अम्बड-इदमिल-चिल्लल-पुलिंद-हारोस-दोववोकारणगन्धा हारवा पहिलय-अमलरोम-पासपउसा मलया य वंधुया य सूलिकोंकण-गमेय पल्लव-मालव-मग्गर प्राभासिश्रा कणवीर-ल्हसिय-खसा खासिय गोदूर-मोढ डोंबिल गल प्रोस पात्रोस ककेय अक्खाग हणरोमग-हुणरोमगमरमस्य चिलाय वियवासी य एवमाइ, खेत्तमिलिक्खू / ' ___ इसमें "म्लेच्छ अनेक प्रकारके ," ऐसा लिख कर गक, यवन, (यूनान ) किरात, शबर, बबर, मुरुण्ड, मोड ( उडीसा ), भटक, रिणमणग, पक्करिणय, कुलक्ष, गोंड, सिंहन (लंका), फारम, (ईरान), गोध, कोंच मादि देश-विशेषनिवासियों को 'म्लेच्छ' बतलाया है। टीकाकार मलयगिरि मूरिने भो इनका कोई विशेष परिचय नहीं दिया-सिर्फ इतना ही लिख दिया है कि म्लेच्छोंकी यह भनेक प्रकारता शक-यवन-चिलात-शबर-बबंगदि देशभेदके कारण है। शकदेश निवासियोंको 'शक' यवनदेश-निवासियोंको 'यवन' समझना, इसी तरह सर्वत्र लगालेना पोर इन देशोंका परिचय लोकमे-लोकशास्त्रोंके आधार पर प्राप्त करना इन देशों में कितने ही तो हिन्दुस्तानके भीतरके प्रदेश है, कुछ हिमालय पादिके पहाड़ी मुकाम है पोर कुछ मरहही इलाके है। इन देशोंके सभी निवासियोंको म्लेच्छ कहना म्लेच्छस्यका कोई ठीक परिचायक नहीं है क्योंकि इन देशों में प्रापं लोग भी बसते हैं-प्रर्थात् एसे जन भी निवास करते हैं जो मंत्र, जाति तथा कुमकी दृष्टिको छोड़ देने पर भी कर्मको दृष्टिमे, शिल्पको तम्यानेकवियत्वं शक-यवन-चिलात-गवर-वरादिदेशभेदात, तथा चाह- जहा सगा, इत्यादि, शकदेशनिवासिनः शका, यवनदेशनिवासिनो यवनाः एवं, नबरममी नानादेशाः मोकतो विज्ञयाः।"