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________________ 682 जैनसाहित्य और इतिहासपरविशद प्रकाश ___ इसके सिवाय, उक्तस्वरूप-कथन-द्वारा यद्यपि अकर्मभूमक (भोगभूमिया) मनुष्योंको म्लेच्छोंमें शामिलकर दिया गया है, जिससे भोगममियोंकी सन्तान कुलकरादिक भी म्लेच्छ ठहरते हैं, और कुलार्य तथा जात्यार्यकी कोई ठीक व्यवस्था नहीं रहती। परन्तु श्वे० प्रागम ग्रन्थ (जीवाभिगम तथा प्रजापना-जैसे ग्रन्थ) उन्हें म्लेच्छ नहीं बतलाते-प्रन्तीपजों तकको उनमें म्लेच्छ नहीं लिखा; बल्कि मार्य मोर म्लेच्छ ये दो भेद कर्मभूमिज मनुष्योंके ही किये हैं-सब मनुष्योंके नहीं; जैसा कि प्रज्ञापना-मूत्र नं. 37 के निम्न मंशसे प्रकट है: से कि कम्मभूमगा? कम्मभूगा पण्णरसविहा पएणता, तं जहापंचर्हि भरहेहिं पंचहि एरावहिं पंचहि महाविदेहेहि; ते समासो दुविहा पएणत्ता, तं जहा-आयरिया य मिलिक्खू य / " __ ऐसी हालतमें उक्त भाष्य कितना अपर्याप्त, कितना अधूरा, कितना विपरीत और कितना सिद्धान्तागमके विरुद्ध है उसे बतलानेकी जरूरत नहीं-सहृदय विज्ञ पाठक स्वयं समझ सकते हैं / उसकी ऐसी मोटी मोटी त्रुटियां ही उमे स्वोपशभाष्य माननसे इनकार कराती हैं और स्वोपजभाष्य माननेवालोंकी ऐसी उक्तियों पर विश्वास नहीं होने देती कि 'वाचकमुख्य उमाबातिके लिए मूत्रका उल्लंघन करके कथन करना असम्भव है / ' प्रस्तु। अब प्रज्ञापनमूत्रको लीजिए, जिसमें कर्मभूमिज मनुष्यों के ही प्रार्य पौर मरेछ ऐसे दो भेद किए हैं। इसमें भी प्रार्य तथा म्लेच्छ का कोई विशद एवं व्यावनंक लक्षण नहीं दिया। मार्योके तो ऋद्धिप्राप्त प्रतिप्राप्त ऐसे दो मूलभेद करके ऋदि. प्राप्तोंके छह भेद किये है-अरहंत, चक्रवर्ती, बलदेव,वामुदेव,वारा विद्याधर | और प्रनृद्धिप्राप्त पार्यों के नव भेद बतलाए है, जिनमें छह भेद तो क्षेत्रार्य प्रादि वे ही हैं जो उक्त तत्वार्थाषिगममाप्यमें दिए हैं, शेष तीन भेद भानार्य, दर्शनार्य और चारित्रार्य हैं, जिनके कुछ भेद-प्रभेदोका भी कपन किया है। साथ ही, * जीवाभिगममें भी यही पाठ प्राय: ज्यों का त्यों पाया जाता है-- 'मिलिकबू' की जगह 'मिलेच्छा' जैसा पाठभेद दिया है। + “नापि वाचकमुख्याः सूत्रोल्लंघनेनाभिदधत्यसंभाव्य-मानत्वात् / " -सिरसेन्गलिटीका, 10 267
SR No.010050
Book TitleJain Sahitya aur Itihas par Vishad Prakash 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Shasan Sangh Calcutta
Publication Year1956
Total Pages280
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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