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________________ 672 जैनसाहित्य और इतिहासपर विशद प्रकाश है. जिनमें से एक श्लोकमें यह बतलाया है कि जो अपनी का दूसरेकी सान की हुई भूमिका अपहरण करता है वह साठ हजार वर्षतक नरकमें पकाया जाता है, मर्थात कष्ट भोगता है। और दूसरेमें यह सूचित किया है कि स्वयं दान देना मासान है परन्तु मन्यके दानार्थका पालन करना कठिन है, अत: दानकी अपेक्षा दानका अनुपालन श्रेष्ठ है। इन 'उक्त च' श्लोकोंके बाद इस पत्र लेखकका नाम "दानकीर्ति भोजक" दिया है और उसे परम धार्मिक प्रकट किया है। इस पत्रके शुरूमें महंतकी स्तुतिविषयक एक सुन्दर पर भी दिया हमा है जो दूसरे पत्रोंके शुरूमें नहीं है, परन्तु तीसरे पत्रके बिल्कुल पन्तमे जरासे परिवर्तन के साथ जरूर पाया जाता है। पत्र नं. २-यह दानपत्र कदम्बोंके धर्म महाराज श्रीविजयशिवमृगेश वर्मा' की तरफमे लिखा गया है और इसके लेखक है 'नरवर' नामके मना. पति / लिखे जाने का समय चतुर्थ संवत्सर वर्षाः (ऋतु) का पाठवा पक्ष मौर पूर्णमासी तिथि है / इस पत्रके द्वारा 'कालवङ्ग' नामके ग्रामको तीन भागोमे विभाजित करके इस तरह पर दान दिया है कि पहला एक भाग तो पहंच्छाला परम पुलस्याननिवासी भगवान् महंनमहाजिनेन्द्र देवनाके लिये, दुमरा भाग प्रहंत्रोक्त सदर्माचरणमें तत्पर श्वेताम्बा महाश्रमणसंघके उपभोग के लिये और तीसरा भाग निग्रन्थ अर्थात दिगम्बर महाश्रमणमंधक उपभोगक लिये। साथ ही, देवभागके सम्बन्ध यह विधान किया है कि वह धान्य, देवपूजा, बलि, चरु, देवकर्म, कर, भग्नक्रिया प्रवर्तनादि अर्थोपभोग के लिये है और यह सब न्यायलब्ध है / अन्त में इस दानके अभिरक्षकको वही दान के फलका भागी और विनाशकको पंच महापापोंसे युक्त होना बतलाया है. जैसा कि नं. 1 के पत्रमें उल्लेख किया गया है। परन्तु यही उन चार उक्त' श्लोकोंमेंसे सिर्फ पहलेका एक इलोक दिया है जिसका यह अर्थ होता है किवीको सगरादि बहुनसे राजामोंने मांगा है, जिम समय जिस जिसको भूमि होती है उससमय उसी उसीको फल लगता है।' इस पत्र में चतुर्थ सवत्सरके उल्लेबसे प्यपि ऐसा भ्रम होता है कि यह दानपत्र भी उन्हीं मृगेश्वरवर्माका है जिनका उल्लेख पहले मम्बरके पत्रमें है अर्थात् जिन्होंने पत्र में विवाया था और को उनके राज्यके मीसरे वर्षमें मिला गया था, परन्तु एकको 'मीमृगेश्वर
SR No.010050
Book TitleJain Sahitya aur Itihas par Vishad Prakash 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Shasan Sangh Calcutta
Publication Year1956
Total Pages280
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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