________________ कदम्बवंशीय राजाओंके तीन ताम्रपत्र 601 इससे भी अधिक मानते है / जान पड़ता है कदम्बवंशके राजघराने में इन देवियोंकी भी बहुत बड़ी मान्यता थी। जिन कदम्ब राजाओंकी मोरसे ये दानपत्र लिखे गये है वे सभी 'मानव्यस' गोत्रके थे, ऐसा तीनों पत्रोंमें उल्लेख है। साथ ही, पहले दो पत्रों में उन्हें हारितीपुत्र भी लिखा है। परन्तु 'हारिती'इन कदम्बवंशी राजाओंकी साक्षात् माता मालूम नहीं होती, बल्कि उनके घरानेकी कोई प्रसिद्ध मोर पूजनीया स्त्री जान पड़ती है जिसके पुत्रके तौरपर ये सभी कदम्ब पुकारे जाते थे, जैसा कि प्राजकल बुजे के सेठोंको 'रानीवाले' कहते है। अब में इस समुच्चय कथनके अनन्तर प्रत्येक दानपत्रका कुछ विशद परिचय अथवा सारांश देकर मूलपत्रोंको ज्योंका त्यों उद्धृत करता हूँ। पत्र नम्बर १--यह पत्र 'श्रीशांतिवर्मा' के पुत्र महाराज श्री 'मृगेश्वरवर्मा' की तरफसे लिखा है, जिसे पत्रमे काकुस्था (स्था )न्वयी प्रकट किया है, और इससे ये कदम्बराजा, भारतके सुप्रसिद्ध वंशोंकी दृष्टिम, सूर्यवंशी अथवा इक्ष्वाकुवंशी थे, ऐमा मालूम होता है। यह पत्र उक्त मृगेश्वरवर्माके राज्यके तीसरे वर्ष, पौष - ( ? ) नामक संवत्सर मे, कार्तिक कृष्णा दशमीको, जब कि उत्तगभाद्रपद नक्षत्र था, लिखा गया है / इसके द्वारा अभिषेक, उपलेपन, पूजन, भग्नमस्कार ( मरम्मत) और महिमा (प्रभावना ) इन कामोंके लिये कुछ भूमि, जिसका परिमाण दिया है, अरहंत देवके निमित्त दान की गई है। भूमिकी तफमीलमे एक निवनभूमि वालिस पुष्पोंके लिये निर्दिष्ट की गई है / ग्रामका नाम कुछ स्पष्ट नहीं हुपा, 'वहत्परलूरे ऐसा पाठ पढ़ा जाता है / पन्तमें लिखा है कि जो कोई लोभ या मधर्म मे इस दानका अपहरण करेगा वह पंच महा पापोंसे युक्त होगा मोर जो इमको रक्षा करेगा वह इम दानके पुण्यफलका भागी होगा। साथ ही इसके ममर्थन में चार श्लोक भी 'उक्त च' रूपसे दिये "माझी माहेश्वरी बडी वाराही बंधावी नथा। कौमारी चैव चामडा चचिकेत्यष्टमातरः // देखो, वामन शिवराम पाटेको 'संस्कृत इंग्लिश डिक्शनरी'। - * साठ संवत्सरों में इस नामका कोई संवत्सर नहीं है। संभव है कि यह किसीका पर्याय नाम हो या उस समय दूसरे नामोंके भी संवत्सर प्रचलित हों।