________________ 670 जैनसाहित्य और इतिहासपर विशद प्रकाश 'हमें ऐसा निश्चित हुपा है कि कदम्बवंशकी दो शाखाएँ थीं, जिनमें से एकको 'गोरा' शाखा और दूसरीको 'वनवासी शाखाके तौरपर निरूपण किया जा सकता है। यह बिल्कुल सम्भव है कि इन दोनों शाखामोंके मायमें कुछ सम्बन्ध था, परन्तु इस समय उस विषयका निर्णय करने के लिये हमारे पास सामग्री नहीं है। हमारा यह भी निश्चय है कि जिन राजापोंका हमारे इन पत्रोंमें उल्लेख है वे 'वनवासी' शाखाके थे, और यह कि उन्हें सर डबल्यू एलियटके पत्रमें गिनाये गये वनवासी कदम्बोंसे एक भिन्न विभागमें स्थापित करने की कोई काफ़ी वजह नहीं है / इसके सिवाय, हमारा निर्णय यह है कि ये राजा अपने पत्रारूढ दानोंसे स्वतंत्र सम्राट मालूम होते है, न कि चालुक्य राजापोंके मातहत (प्रधिकाराधीन), जैसा कि उनके उत्तराधिकारी थे। और यह कि वे, सम्पूर्ण सम्मावनामोंको ध्यानमें लेने पर भी ईसाके बाद पांचवीं शताब्दीमे पहले हुए जान पड़ते हैं / अन्त में हमारी यह तजवीज है कि यहां इस बातके विश्वास करनेकी बहत बड़ी वजह है कि ये प्राचीन कदम्ब जनमतानुयायी थे, जैसा कि हम कुछ बादके कदम्बोंको उनके दानपत्रों परसे पाते हैं।' इन तीनों दानपत्रोंको बहुतमी शब्दरचना परस्पर कुछ ऐमो मिलती-जुलती है कि जिससे एक दूसरेको देखकर लिखा गया है, यह कहनों कुछ भी संकोर नहीं होता / परन्तु सबसे पहले कोनसा पत्र लिखा गया है, यह प्रभी निश्चित नहीं हो सका / सम्भव है कि ये पत्र इमी क्रममे निम्बे गये हों जिस क्रमसे इनपर प्रकाशनके समय नम्बर डाले गये है। तीनो पत्रोंमें 'स्वामिमहासन' और 'मातृगण' का उल्लेख पाया जाता है जिनके पनुध्यानपूर्वक कदम्ब-राजा भिपिक्त होते थे। जान पड़ता है 'स्वामिमहामेन' कदम्ब वंशके कोई कुलगुरु थे। इमीसे राज्याभिषेकादिकके समयमें उनका बराबर स्मरण किया जाता था। परन्तु स्वामिमहामेन कब हुए हैं और उनका विशेष परिचय क्या है, ये सब बातें अभी अंधकाराच्छन्न है / मातृगणसे अभिप्राय उन स्वर्गीय मातामोंके समूहका मालूम होता है जिनकी संख्या कुछ लोग सात, कुछ पाठक और कुछ यथा:-"ब्राह्मी माहेश्वरी चैव कोमारी वैष्णवी था / माहेंद्री चैव वाराही चामुग सप्तमातरः . . ...