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________________ कदम्बवंशीय राजाओंके तीन ताम्रपत्र इस लेख-द्वारा कदम्ब-राजामोंके तीन ताम्रपत्र पाठकोंके सामने रखे जाते है, जो कि ऐतिहासिकदृष्टिसे बहुत कुछ पुराने और बड़े महत्वके है। ये तीनों ताम्रपत्र, कुछ पर्सा हुप्रा. देवगिरि तालुका करजघी (जि.धारवाड़ )का तालाब खोदते समय मिले थे और इन्हें मिस्टर काशीनाथ त्रिम्बक तेलंग, एम० ए०, एलएल० बी० ने, रायल एशियाटिक सोसायटीको बम्बईशाखाके जनल नं० 34 की १२वीं जिल्दमें, अपने अनुसंधानोंके साथ प्रकाशित कराया था। इनमेस पहला पत्र (Plate ) समकोण तीन पत्रों ( Rectangular sheets) से, दूसरा चार पत्रोंसे और तीसरा तीन पत्रोंसे बना हमा है। प्रर्थात् ये तीनों दानपत्र, जिनमें जैनसंस्थानोंको दान दिया गया है, क्रमशः तावके तीन, चार भोर तीन पत्रोंपर खुदे हुए है। परन्तु प्रत्येक दानपत्रके पहले मोर अन्तिम पत्र. का बाहिरी भाग खाली है और भीतरी पत्र दोनों प्रोग्मे खुदे हुए है। इस तरह दानपत्रोंको पृष्ठसंख्या कमशः 4, 6 पोर 4 है / प्रत्येक दानपत्रके पत्रोंमें एक एक मामूली छल्ला ( Ring ) मुराबमें होकर पडा हुमा है जिसके द्वारा वे पत्र नत्थी किये गये हैं। शुरूनोंपर मुहर मालूम होती है, परन्तु वह पब मुशकिलसे पढ़ी जाती है। उक्त जनलमें इन तीनों दानपत्रोंके प्रत्येक पृष्ठका फोटू भी दिया है और उस परमे ये पत्र गुप्त-राजाओंकी लिपिमें लिखे हुए मालूम होते है। मिस्टर काशीनाथजी, अपने अनुसंधानविषयक नोटसमें, लिखते है कि "कृष्णवर्मा, जिसका उल्लेख यहाँ तीसरे दानपत्रमें है, वही कृष्णवर्मा मासूम होता है जिसका उल्लेख चेरा ( chera) के वानपत्रों में पाया जाता है। क्योंकि उन पत्रों में जिस प्रकार कृष्णवर्माको महाराजा पोर अश्वमेधका कर्ता लिखा
SR No.010050
Book TitleJain Sahitya aur Itihas par Vishad Prakash 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Shasan Sangh Calcutta
Publication Year1956
Total Pages280
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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