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________________ जैनसाहित्य और इतिहासपर विशद प्रकाश साय अगली गाथा नं० 160 दी है, और इस तरह उक्त पंक्तियोंके द्वारा पूर्वोहिष्ट-पूर्ववर्ती नवपदार्थाधिकारमें 'सम्मत्तं' प्रादि दो गाथामोंके द्वारा कहे हुए -~-व्यवहारमोक्षमार्गकी पर्यायदृष्टिको स्पष्ट करते हुए उसे सर्वथा निषिद्ध नहीं ठहराया है। बल्कि निश्चय-व्यवहारनयमें साध्य-साधन-भावको व्यक्त करते हुए दोनों नयोंके प्राश्रित पारमेश्वरी तीर्थप्रवर्तनाका होना स्थिर किया है। इससे उक्त पक्तियां दूसरी गाथाके साथ सम्बन्ध रखती है और वहीं पर सुसंगत है। सम्यक्त्वप्रकाशके विधाताने “यत्त" शब्दको तो उक्त गाथा 156 ( 167 ) की टीकाके अन्तमें रहने दिया है, जो उक्त पंक्तियोंके बिना वहां लड्रामा जान पड़ता है ! और उन पंक्तियोंको यों ही बीचमें घुसेड़ी हुई अपनी उक्त गाथा नं. 168 (106) की टीकाके रूपमें धर दिया है !! ऐसा करते हुए उसे यह समझ ही नहीं पड़ा कि इसमें पाए हुए "पूर्वमुद्दिष्टं" पदोंका सम्बन्ध पहलेके कोनमे कथनके साथ लगाया जायगा !! और न यह ही जान पड़ा कि इन पक्तियोंका इस गाथाकी टीका तथा विषयके साथ क्या वास्ता है !!! इस तरह यह स्पष्ट है कि प्रत्यकारको उद्धृत करनेकी भी कोई अच्छी तमोज नहीं थी पौर वह विषयको ठीक नही समझता था। (घ) पंचास्तिकायको उक्त गाथानों प्रादिको उद्धृत करने के बाद “इति पंचास्तिकायेषु" ( ! ) यह समाप्तिसूचक वाक्य दकर ग्रन्थमें "अथ समयसारे यदुक्तं तल्लिख्यते' इस प्रस्तावना अथवा प्रतिज्ञा-वाक्यके साथ समयसारकी 11 गाथाए न० 228 से 238 नक, मंस्कृतछाया और अमृतचन्द्राचार्यकी यात्मख्याति टीकाके माथ, उदधृत की गई है। ये गाया वे ही है जो रायचन्द्रजेन ग्रंथमालामें प्रकाशित समयसारमें क्रमशः नं० 206 से 236 तक पाई जाती है। प्रात्मख्यातिमें 224 से 227 तक चार गाथानोंको टीका एक साथ दी है और उसके बाद कलशरूपसे दो पद्य दिये है। सम्यक्त्वप्रकाशके लेखकने इनमेंसे प्रथम दो गाथानोंको तो उद्धृत ही नहीं किया, दूसरी दो गाथानोंको अलग अलग उद्धृत किया है, और ऐसा करते हुए गाथा नं० 228 ( 226 ) के नोचे वह सब टीका दे दी है जो 228, 226 ( 226, 227 ) दोनों गाथानोंकी थी ! सायमें "त्यक्त येन फल" नामका एक कलशपद्य भी दे दिया है और दूसरे "सम्यग्दृष्टय एव" नामके कलशपचको
SR No.010050
Book TitleJain Sahitya aur Itihas par Vishad Prakash 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Shasan Sangh Calcutta
Publication Year1956
Total Pages280
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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