________________ 660 जैनसाहित्य और इतिहासपर विशद प्रकाश अन्यप्रतिको देखने पोर परीक्षा करनेसे मुझे मालूम हो गया कि इस बन्यके सम्बन्धमें जो अनुमान किया गया था वह बिल्कुल ठीक है-यह अन्य अनुमानसे भी कहीं अधिक माधुनिक है और जरा भी प्रमाणमें पेश किये जानेके योग्य नहीं है। इसी बातको स्पष्ट करनेके लिये माज में इस ग्रन्यकी परीक्षा एवं परिचयको अपने पाठकोंके सामने रखता हूँ। सम्यक्त्वप्रकाश-पराधा यह ग्रन्थ एक छोटासा संग्रह ग्रन्थ है, जिसकी पत्र-संख्या 37 है-३७वें पत्रका कुछ पहला पृष्ठ तथा दूसरा पृष्ठ पूरा खाली है-पौर जो प्राय: प्रत्येक 10 पर पंक्तियों तथा प्रत्येक पक्तिमें 45 के करीब प्रक्षरोंको लिये हुए है / ग्रन्थपर लेखक अथवा संग्रहकारका कोई नाम नहीं है पोर न लिखनेका कोई सन् संवतादिक ही दिया है। परन्तु ग्रन्थ प्रायः उमीका लिखा हुमा अथवा लिखाया हमा जान पड़ता है जिसने संग्रह किया है भोर 60-70 वर्षसे अधिक समय पहलेका लिखा हुमा मालूम नहीं होना / लायब्ररीके निटपर Comes Fronm Surat शब्दोंके द्वारा सूरतसे पाया हुप्रा लिखा है और इसने हकनकालिज. लायब्ररीके सन् 1875-76 के संग्रहमें स्पान पाया है। इसमें मंगलाचरणादि-विषयक पद्योंके बाद "तत्त्वार्थानं सम्यग्दर्शनमितिसूत्रं // 1 // " ऐसा लिखकर इम मुत्रकी व्याख्यादिके रूपमें सम्यग्दर्शनके विषयपर क्रमश: सर्वासिति, राजगतिक. श्लोकवातिक, दर्शनपाड. मूत्रपाहुह, चारित्रपाहड, भावपाहुड, मोक्षपाहा. संचास्तिकाय, समयसार पोर बहद मादिपुरणके कुछ वाक्योंका संग्रह किया गया है। वार्तिकोंको उनके माध्यसहित, दर्शनपाइडको सम्पूर्ण 36 गाथाम्रोको (जिनमे मंगलाचरणकी गाण भी शामिल है ! ) उनकी याया सहित, शेप पाहुगेकी कुछ कुछ गाथामोंको बायासहित, पंचास्तिकाय और समयसारकी कतिपय गायापोंको छाया तथा अमुचन्द्राचार्यकी टीकासहित उद्धृत किया गया है। इन ग्रन्थ-वाक्योंको उद्धृत करते हुए जो प्रस्तावनावाक्य दिये गये है और उमरणके पनन्तर जो समातिसूचक वाक्य लिये है अन्हें बतायामाचरणादिके 3-4 पोंको छोड़कर इस सबमें अन्धकाका प्रमोर नहीं है।