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________________ स्वामी पात्रकेसरी धीर विद्यानन्द 654 कुमारिल' नामके उस लेख में उपस्थित किया था जो सन् 1862 में रायल एशियाटिक सोसाइटी बम्बई ब्रांचके जनल (J. B. B. R. A. S. For 1892 PP. 222,223)में प्रकाशित हुप्रा था। इसके साथमें दो प्रमाण पोर भी उपस्थित किये थे-एक प्रादिपुराणकी टिप्पणीवाला और दूसरा ज्ञान. सूर्योदय नाटकमें 'प्रष्टशती' नामक बोपात्रमे पुरुषके प्रति कहलाये हए वाक्यवाला, जो मेरे उक्त लेखमें क्रमश: नं० 2, 4 पर दर्ज है। डा. शतीश्चन्द्र विद्याभूषणने, अपनी इण्डियन लांजिककी हिस्टरीमें, के. बी. पाठकके दूसरे दो प्रमाणोंकी प्रवगणना करते हुए और उन्हें कोई महत्त्व न देते हुए, सम्यक्त्वप्रकाशबाले प्रमाणको ही पाठकजीके उक्त लेखके हवालेसे अपनाया था पोर उसीके प्राधारपर, बिना किमी विशेष ऊहापोहक, पात्रकेमरी और विद्यानन्दको एक व्यक्ति प्रतिपादित किया था। मोर इसलिये ब्रह्मनं मिदत्तके कथाकोश तथा हम बाबाले मिलानेखके शेष दो प्रमागोंको, पाठक महाशयकं न समझकर तात्या नेमिनाथ पांगलके समझने चाहिय, जिन्हें प०नाथूरामजी प्रेमोने अपने 'स्याद्वादविद्यापनि विद्यानन्दि' नामकं उम लेखमे अपनाया था जिसकी मैंने अपने उस लेखमें पालामना की थी। अम्न् / उक्त लेख लिखते समय मेरे सामने 'सम्यक्त्वप्रकाश' ग्रन्थ नही था-प्रयत्न करनेपर भी में उमे उस समय तक प्राप्त नहीं कर सका था-पोर इसलिये दूसरे मा प्रमाणोंगी पालोचना करके उन्हें नि:सार प्रतिपादन करनेके बाद मैंने सम्यक्त्वप्रकाशके "श्लोकवानिके विद्यानन्दिअपरनामपात्रकेसरिम्वामिना यद तरचलिरूपते" इस प्रस्तावना-वाक्यकी कथनशैली परमें इतना ही अनुमान किया था कि वह ग्रन्थ बहुत कुछ माधुनिक जान पड़ता है, और दूसरे स्पष्ट प्रमाणोकी रोशनी में यह स्थिर किया था कि उसके लेखकको दोनों पाचा. योकी एकनाके प्रतिपादन करनेमे जरूर भ्रम हमा है अथवा वह उसके समझनेको किसी गलतीका परिणाम है। कुछ प्रसे बाद मित्रवर प्रोफेसर ए० एन० उपाध्यायनी कोल्हापुरके मत्प्रयत्नले 'सम्यक्रवप्रकाश' की वह नं. 777 की पूनवाली मूल प्रति ही मुझे देखने के लिये मिल गई, जिसका पाठक महाशयने अपने उस मन् 1812 वाले लेखमें उल्लेख किया था। इसके लिये में उपाध्यायजीका बार तोरसे पामारी ई पोर वे विशेष धन्यवापापात्र हैन ..
SR No.010050
Book TitleJain Sahitya aur Itihas par Vishad Prakash 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Shasan Sangh Calcutta
Publication Year1956
Total Pages280
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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